गद्यांश (भाषा - खड़ी बोली )
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>अभिनय
>अभिमान
>आंदोलन
>आक्रोश
>आत्मसम्मान
>आदर्श
वस्तुतः मध्यकाल के अलंकारशास्त्री काव्य को तैयार माल के रूप में देखने के अभ्यस्त इसलिए हो गए थे कि…
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दरारों वाली सपाट सूखी भूमि नपुंसक पति की संतानेच्छु पत्नी की तरह बेकल नंगी पड़ी है।
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एक अखबार के एडीटर की इस लिखावट सै क्या, क्या बातें मालूम होती हैं ? प्रथम तो यह है कि हिंदुस्थान…
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उन दिनों देश का अधिकांश भाग जंगलों से घिरा हुआ था। इन जंगलों में जहाँ अनेक हिंसक जन्तु फैले…
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योगी ने ठीक ही कहा था, अपने को निःशेष भाव से दे देने को ही वशीकरण कहते हैं। अन्तिम जीवन में मौखरि-नरेश…
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अपने जीवन में फिर से वापस लौटना या कि आत्मकथा जैसा कुछ लिखना कितनी बड़ी यातना है। जीवन में जहाँ गरमाहट…
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मदनमोहन की स्त्री अपनें पतिको किसी समय मौकेसै नैक सलाह भी देती है परंतु बड़ोंकी तरह दबाकर नहीं। बराबर…
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अमृत के पुत्रों, मृत्यु का भय माया है, राजा से भय दुर्बल चित्त का विकल्प है। ........ अमृत के पुत्रों,…
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जहाँ कहीं भी तेज है, दृढ़ता है, अपराजित हृदय है, पवित्रता और न्याय की रक्षा के लिए बाँहें धनुष चढ़ा…
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गंधर्व और कंदर्प वस्तुतः एक ही शब्द के भिन्न-भिन्न उच्चारण हैं।
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वस्तुतः बीसवीं सदी के चौथे दशक में विद्रोह फक्कड़पन के ही किसी-न-किसी रूप को लेकर साहित्य में प्रकट…
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आज तो सिर्फ दो ही दल हैं इस देश में। एक दल में हैं ठेकेदार, व्यवसायी, अफसर, राजनीतिज्ञ तथा पत्रकार…
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आर्यावर्त्त-जैसी विचित्र समाज-व्यवस्था मैंने कहीं नहीं देखी है। यहाँ इतना स्तर-भेद है कि मुझे आश्चर्य…
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अपने सर्जनात्मक रूप में आलोचना-कर्म मूलतः व्यक्तिगत प्रयास है, क्योंकि किसी कृति-संबंधी प्रत्येक…
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’आलोचना की संस्कृति’ को ठीक से समझने के लिए संस्कृति की आलोचना जरूरी है और संस्कृति की…
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आलोचना की भाषा शून्य में निर्मित नहीं होती; वह पहले ही से विविध सांस्कृतिक परतों से छनती हुई आती…
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रोहित से उसने कभी नहीं पूछा कि क्या उसका दिल उससे कभी यह नहीं कहता कि तुम पराए लोगों के बीच रहते…
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देख रे, तेरे शास्त्र तुझे धोखा देते हैं। जो तेरे भीतर सत्य है, उसे दबाने को कहते हैं; जो तेरे भीतर…
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कोरी सौंदर्य साधना, कोरा सौंदर्यबोध निरर्थक है। इसे शील से जोड़कर ही रचनात्मक और मंगलमय बनाया जा सकता…
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मैंने इस बार स्वाभाविक संकोच छोड़कर इस कमनीयता की मूर्त्ति की ओर देखा। उसको देखकर अत्यन्त पतित व्यक्ति…
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यह पीपल दार्शनिकों का भी वृक्ष है। भारतीयों के मन पर यह आर्यों के आगमन के पूर्व से ही हावी है। मोहनजोदड़ो-हड़प्पा…
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मेरा जीवहंस ऊपर मँडराता रहा नील व्योम में, नील परमपद के मध्य और नीचे प्रभु के मन-समुद्र से उत्पन्न…
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“एकान्त का तप बड़ा तप नहीं है, बेटा! देखो, संसार में कितना कष्ट है, रोग है, शोक है, दरिद्रता…
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देवरात शान्त वाणी में बोले, “कविता, भगवती महामाया की इच्छा-शक्ति है, व्यवहार- जगत् उनकी क्रिया-शक्ति…
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जानती है, अनादि काल से तितली फूल के इर्द-गिर्द चक्कर काट रही है, लता वृक्ष को आच्छादित करके उल्लसित…
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इस रास्ते से उल्लास और उन्माद चाहे गये हों, अनुराग और औत्सुक्य नहीं गये। यह सब क्यों हो रहा है ?…
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सारे मानवीय रिश्ते, सारे भाव, सारी करुणा-प्रेम-सहानुभूति का कारोबार उन मूल्यों या सत्यों पर निर्भर…
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कुछ सुना, कुछ कहा-सब बीत जाता है। ऐसे जैसे कभी हुआ ही नहीं हो या किसी और के जीवन में हुआ हो। शब्द…
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दुनिया है कि मतलब से मतलब है, रस चूस लेती है छिलका और गुठली फेंक देती है।
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कोई आदमी जब मरता है, तो शायद साल-भर तक उसकी मौजूदगी हर किसी के दिमाग में बनी रहती है। बरसी होने के…
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संप्रदाय-स्थापना का अभिशाप यह है कि उसके भीतर रहनेवाले का स्वाधीन चिंतन कम हो जाता है। संप्रदाय की…
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देखते-देखते चन्द्रमा पद्म-मधु से रँगे हुए वृद्ध कलहंस की भाँति आकाशगंगा के पुलिन से उदास भाव से पश्चिम…
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हमारे साहित्य में ’आत्मा’ का प्रतीक ’हंस’ माना गया है तो ’मन’…
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लाला ब्रजकिशोर कहनें लगे, ‘‘मुनासिब रीति सै थोड़े खर्च मैं सब तरहका सुख मिल सक्ता है परंतु…
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‘छायावाद’ की विभिन्न प्रवृत्तियों और विशेषताओं की गणना करने वाले आलोचकों ने भी छायावाद…
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’’यह रात है कि अफीम है !’’ कहकर नरेस मिस्त्री रोज सोने के पूर्व करवट बदला…
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सृष्टि का आदिम गर्भाधान क्षण भी घोर तुषाराच्छादित अखण्ड रात्रि का क्षण था-एक बिन्दु पर आकर देश-काल…
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गान अपभ्रंश भाषा में था। भैरवियों ने गाया--
“अमृत के पुत्रों, नगाधिराज हिमालय की शीतल…
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जहाँ कहीं अपने-आपको उत्सर्ग करने की, अपने-आपको खपा देने की भावना प्रधान है, वहीं नारी है। जहाँ कहीं…
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अपना पैसा गाँठ में होने के बावजूद लन्दन जाने के लिए मोहनदास को दूसरों से कर्ज लेना पड़ा था। अगर न…
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मैं आज स्पष्ट देख रहा हूँ कि जितने बँधे-बँधाये नियम और आचार हैं उनमें धर्म अँटता नहीं। वह नियमों…
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जिस कमरे में महादेव भाई का शव रखा था, उसे फूलों से सजाया गया था। कुछ घंटों तक सबके दर्शनों के लिए…
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तर्क वस्तु ही गलत है। भगवान् ने जीवन में करुणा को प्रतिष्ठित करना चाहा था। जिसमें वह करुणा नहीं,…
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जब जन्म लिये हैं तो पगहा-खूँटा चाहे वह कितना ही सूक्ष्म हवाई क्यों न हो, चाहिए। अतः घर का महत्त्व…
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दार्शनिकों ने माया-दर्पण का बखान किया है, सन्तों ने ’हिरदय-दरपन’ को धो-पोंछकर निर्मल-प्रसन्न…
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प्रेमचन्द के माध्यम से द्विवेदीजी ने एक प्रकार से हिन्दी जाति के भावबोध की उस विशेषता की ओर संकेत…
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“देख रे, तेरा बाप शास्त्र का बड़ा भारी पंडित है। काव्य का, संगीत का, चित्र का, मूर्त्ति का सहृदय…
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देवि, पावक को कभी कलंक स्पर्श नहीं करता, दीपशिखा को अन्धकार की कालिमा नहीं लगती, चन्द्र-मण्डल को…
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मेरे विद्याव्रत का आरम्भ उस दिन से नहीं जिस दिन चतुर्वेदी जी ने कान में -ऊँ भूर्भुवः स्वः....’…
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मैं उन्हें समझा रहा था कि लड़की की शादी में टीमटाम में व्यर्थ खर्च मत करो।
पर वे…
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‘‘धन्य ! लालासाहब! धन्य ! अब तो आपके सुधरे हुए बिचार हद्द के दरजें पर पहुँच गए’’…
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मनुष्य के अन्दर शायद स्वर्ण का आकर्षण अधिक प्रबल है, इसी से वह सदैव “एल्डोरेडो“ की कल्पना…
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यह ‘नित्य अकेलापन‘ रचना-प्रक्रिया की अनिवार्य आवश्यकता है। सृजन के चरम क्षण के…
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कैसे समझाती कि पत्नी का भी अपना जीवन होता है ? जीवन जीने का हर किसी का एक अपना अन्दाज होता है ? उसने…
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रचना की महानता से ही आलोचना महान होती है। यह छायावादी रचना का वैभव ही था जिसने हिंदी में आलोचना के…
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तम या कालिमा आदिम रंग है। इसका आदिम वर्ण है सर्वग्रासी। यहाँ तक कि अन्धकार का भी भक्षण कर जाने वाली…
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कालिदास ने प्रेम के देवता को वैराग्य की नयनाग्नि से भस्म नहीं कराया है, बल्कि उसे तपस्या के भीतर…
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फिर पिता गोकुलदास खड़े हुए और समय, कल्प, युग, जम्बूद्वीप, देश, वर्ष, मौसम, दिन, नगर, नक्षत्रों की…
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शायद पुत्र-पौत्र स्त्री जीवन की उतनी ही बड़ी उपलब्धि होती है जितनी बड़ी एक स्वतंत्रता सेनानी के लिए…
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“देख बाबा, तू व्यर्थ की बहस करने जा रहा है। बाबा ने जो कुछ कहा है वह पुरुष का सत्य है। स्त्री…
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“देख रहे हो न, कि मृत्यु सबको निगलने के लिए मुँह बाए खड़ी है, और फिर भी लोग जीना चाहते हैं ?…
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प्रगतिवाद हिन्दी साहित्य की परम्परा का स्वाभाविक विकास है।
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प्रगतिशील साहित्य कोई स्थिर…
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प्रयोगवाद उत्तर-छायावाद की समाजविरोधी अतिशय व्यक्तिवादी मनोवृत्ति का ही बढ़ाव है।
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‘वाद’…
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‘‘प्रीती के बराबर संसार मैं कौन्सा पदार्थ है?’’ लाला मदनमोहन कहनें लगे और…
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मानवीय प्रवृत्तियों का दमन सामन्ती दमन का ही एक अंग है। अमानवीकरण की यह प्रक्रिया शासक वर्गों के…
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मेघ बरसने के बाद आसमान शान्त और साफ हो जाता है, वैसे ही मन भी रति के बाद निर्मल, शुभ्र और कामनाहीन…
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कविता में जहाँ देवताओं के प्रेम का वर्णन होता था, वह स्थान साधारण मनुष्य ले ले-यह जनतांत्रिक भाव…
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स्नेह बड़ी दारुण वस्तु है, ममता बड़ी प्रचण्ड शक्ति है।
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पर मेरा भाग्य अब भी किसी अदृष्ट…
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इस मन या हृदय का कोई ‘विज्ञान‘ नहीं हो सकता, इसका ‘काव्य‘ ही हो सकता है।
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भारतीय किसान के पास ’रोष’ नाम की वस्तु है ही नहीं। वह तो सनातन ’होरी’ है,…
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‘‘ये बस बातें हँसी खुशी मैं याद आती हैं। क्रोध मैं बदला लिए बिना किसी तरह चित्त का संतोष…
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आज का साहित्यकार एक ही प्रतिबद्धता को श्रेय का मार्ग मानता है। पर एकहरी प्रतिबद्धता और एकहरा…
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रूप हो या शान-शौकत, अगर कोई कद्रदान न हो तो वह छीजते-छीजते साकार कुरूपता में बदल जाता है।
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भक्ति आन्दोलन को मुसलमानों के विरुद्ध हिन्दुओं की प्रतिक्रिया बताने की जिम्मेदारी मूलतः साम्राज्यवादी…
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वस्तुस्थिति यह है आयुष्मान्, कि शून्यता या निरालम्ब या निर्वाण एक अनुभवगम्य वस्तु है। भाषा की कमजोरी…
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वसन्त उल्लास की ऋतु है। वैष्णवों ने इसी उल्लास को रस की दीक्षा का माध्यम बनाया है। इसमें न तो ग्रीष्म…
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चैत्र का वैदिक नाम मधु है और वैशाख का माधव।
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‘‘उपाय करने की कुछ जरूरत नहीं हैं, समय पाकर सब अपनें आप खुल जाता है’’ लाला…
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संयम जब अत्यन्त असहज और अप्राकृतिक हो जाता है तो विपरीत ध्रुव की ही जीत होती है। असहज और अप्राकृतिक…
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“मानव-देह केवल दण्ड भोगने के लिए नहीं बनी है, आर्य ! यह विधाता की सर्वाेत्तम सृष्टि है। यह…
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चन्द्रमा निश्चय ही देर से आकाश पर विचर रहा था। उदय काल में जो एक लालिमा रहा करती है, उसका कहीं कोई…
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’’भइयाजी, यह अपकर्म का महाभारत है’’ आज उपाध्याय की जबान पर जगदम्बा बैठ गयी…
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जयदीप को लगता है कि इस देश में कोई भी बड़े से बड़ा चोर, डाकू, लुटेरा, खूनी नहीं है जो आदर्शों की बात…
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जाने यह देश या कि कहें यह दुनिया बेमेल आदमियों और औरतों से भरी पड़ी है। कुछ लोग नियति मानकर उस बेमेलपन…
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जो वास्तव है उसको दबाना और जो अवास्तव है उसका आचरण करना--यही तो अभिनय है। .......... यह पग-पग का…
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रंगमंच का निर्माण बड़े आडम्बर के साथ हुआ। हजारों कर्मकर उसमें लगाए गए। उन दिनों रंगमंच का निर्माण…
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मैं बीसवीं शती का जीव हूँ। मैं क्षण-भोग का विश्वासी हूँ। हवा, धरती और हरीतिमा ही मेरी नायिकाएँ हैं।…
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विन्ध्याचल की पहाड़ियों में महुआ के काफी जंगल हैं। यहाँ महुआ वन अपने-आप उपजता है और खटीक आदि गरीब…
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रहस्यवाद का एक निश्चित दर्शन है जिसके अनुसार सत्य ‘रहस्य’ है और उसका केवल ‘दर्शन’…
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राजा जानश्रुति को आचार्य औदुम्बरायण ने जब सारी बातें बताईं तो वे जैसे सोते से अचकचाकर जागे-“मुझे…
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छायावादी कवियों ने कभी-कभी व्यंजनागर्भी प्रतीकों का प्रयोग किया। ऐसा प्रायः वहीं हुआ है जहाँ किसी…
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ढूँढ़ना स्वतः एक अमृत-फल है। सारा प्यार ढूँढ़कर पाने में ही है। बिना ढूँढ़ने का श्रम किये प्रिय वस्तु…
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थोड़ी देर पीछै वह लाला मदनमोहनको लिवानें आया और बड़े शिष्टाचारसै लिवा ले जाकर उन्हैं तकियेके सहारे…
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जयगोविन्द पीछे मुड़कर जीवन को देखता है तो लगता है कि यदि आदमी को पता रहता कि उसका भाग्य और उसके देश…
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ऋषि और भी प्रीत जान पड़े। बोले, “साधु वत्स, तुम्हारा संकल्प महान है। तुम अपनी माताजी के साथ…
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कमजोरों में भावुकता ज्यादा होती होगी।
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वसंत आता…
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‘‘आह! वहाँ की शोभाका क्या पूछना है? आमके मौर की सुगंधी सै सब अमरैयें महक रही है। उन्की…
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“प्रजापति ने देवताओं के स्वामी इन्द्र को वामदेव्य साम का रहस्य समझाया था। उन्होंने कहा था,…
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“मैं जानता हूँ, तू वीर-बाला है। जानती है, प्रातृद ने अपने पिता से ‘वीर‘ शब्द की…
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वैष्णव करोड़पति है। भगवान विष्णु का मंदिर। जायदाद लगी है। भगवान सूदखोरी करते हैं। ब्याज से कर्ज देते…
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दरअसल मुखौटा इसलिए मूल्यवान है कि वह स्वयं एक कलाकृति है और कलाकृति स्वयं मनुष्य से ज्यादा अभिव्यंजक…
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शुचि मास अर्थात् क्वार मास। क्वार मास संयम, कौमार्य और पवित्रता का प्रतीक है। इस मास में सूर्य कन्या…
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केवल मनुष्य के पास शब्द हैं। मात्र मनुष्य की ही सरस्वती शब्दमयी है। शब्द का स्रोत ‘प्रातिभज्ञान‘…
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जो समाज-व्यवस्था झूठ को प्रश्रय देने के लिए ही तैयार की गई है, उसे मानकर अगर कोई कल्याण-कार्य करना…
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तुम्हें पूर्ण रूप से शास्त्रज्ञ बनना है, उसके बाद सभी बातों की शास्त्रीय विधि से परीक्षा करने के…
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“अच्छा माँ, सभी स्त्रियों को पारिवारिक सम्बन्धों में ही क्यों पुकारा जाता है ?“
“अपने…
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यह आकस्मिक नहीं है कि भारतीय संस्कृति के नाम पर नैतिकता की ध्वजा फहरानेवाले प्रकृति के सौन्दर्य को…
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यहाँ पर समझने की बात है कि जिसे सारा देश ‘पूरी‘ कहता है उसे भोजपुरी लोग ‘पूड़ी‘…
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आज किसान एक ओर सरकार और बनिये द्वारा, दूसरी ओर श्रमिक-शक्ति की राजनीति द्वारा दो पाटों में फँसकर…
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सिद्धि को साधन समझना कच्चे चित्त की कच्ची कल्पना है। ......... मुझे अवधूत अधोरभैरव के वाक्य याद आये,…
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एक बार उसे लगता था कि उसके पिता ठीक ही कह रहे हैं। महिषमर्दिनी देवी केवल भावों की दुनिया में रह सकती…
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स्त्रियाँ ही रत्नों को भूषित करती हैं, रत्न स्त्रियों को क्या भूषित करेंगे ! स्त्रियाँ तो रत्न के…
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मुझे स्थाणीश्वर के लम्पट राजकुल के अंतःपुर के विषय में श्रद्धा नहीं है। जहाँ चौर्य-लब्ध अत्याचारिता…
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हर जीवित चीज की एक उम्र होती है, वैसे ही हर जड़ चीज की, मसलन एक मकान की भी एक उम्र होती है। यहाँ तक…
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“मैं समझता हूँ कि हर व्यक्ति का अपना एक सत्य होता है। तुम्हारा भी है। है न?
“शायद!“
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आदमियों का हर समूह अपने माने हुए सही या गलत के लिए एकजुट होकर लड़ रहा है-चाहे वह कोई देश हो या जाति…
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हेमन्त का सबसे बड़ा आकर्षण है पत्तियों का पीला पड़ जाना और जरा-सी हवा डोलने पर भू-पतित हो जाना।…
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