गद्यांश (भाषा - खड़ी बोली )

‘त्वं खलु कृती’

वस्तुतः मध्यकाल के अलंकारशास्त्री काव्य को तैयार माल के रूप में देखने के अभ्यस्त इसलिए हो गए थे कि…

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अकाल-उत्सव

दरारों वाली सपाट सूखी भूमि नपुंसक पति की संतानेच्छु पत्नी की तरह बेकल नंगी पड़ी है।
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अखबार के एडीटर की इस लिखावट सै क्या, क्या बातें मालूम होती हैं

एक अखबार के एडीटर की इस लिखावट सै क्या, क्या बातें मालूम होती हैं ? प्रथम तो यह है कि हिंदुस्थान…

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अनामदास का पोथा अथ रैक्व आख्यान

 उन दिनों देश का अधिकांश भाग जंगलों से घिरा हुआ था। इन जंगलों में जहाँ अनेक हिंसक जन्तु फैले…

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अपने को निःशेष भाव से दे देने को ही वशीकरण कहते हैं

योगी ने ठीक ही कहा था, अपने को निःशेष भाव से दे देने को ही वशीकरण कहते हैं। अन्तिम जीवन में मौखरि-नरेश…

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अपने जीवन में फिर से वापस लौटना

अपने जीवन में फिर से वापस लौटना या कि आत्मकथा जैसा कुछ लिखना कितनी बड़ी यातना है। जीवन में जहाँ गरमाहट…

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अपनें पतिको किसी समय मौकेसै नैक सलाह भी देती है

मदनमोहन की स्त्री अपनें पतिको किसी समय मौकेसै नैक सलाह भी देती है परंतु बड़ोंकी तरह दबाकर नहीं। बराबर…

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अमृत के पुत्रों, मृत्यु का भय माया है

अमृत के पुत्रों, मृत्यु का भय माया है, राजा से भय दुर्बल चित्त का विकल्प है। ........ अमृत के पुत्रों,…

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अवरुद्ध त्रेताःप्रतीक्षारत धनुष

जहाँ कहीं भी तेज है, दृढ़ता है, अपराजित हृदय है, पवित्रता और न्याय की रक्षा के लिए बाँहें धनुष चढ़ा…

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अशोक के फूल 


गंधर्व और कंदर्प वस्तुतः एक ही शब्द के भिन्न-भिन्न उच्चारण हैं।
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अस्वीकार का साहस

वस्तुतः बीसवीं सदी के चौथे दशक में विद्रोह फक्कड़पन के ही किसी-न-किसी रूप को लेकर साहित्य में प्रकट…

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आधुनिक सन्दर्भ में साहित्यकार की भूमिका

आज तो सिर्फ दो ही दल हैं इस देश में। एक दल में हैं ठेकेदार, व्यवसायी, अफसर, राजनीतिज्ञ तथा पत्रकार…

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आर्यावर्त्त-जैसी विचित्र समाज-व्यवस्था मैंने कहीं नहीं देखी है

आर्यावर्त्त-जैसी विचित्र समाज-व्यवस्था मैंने कहीं नहीं देखी है। यहाँ इतना स्तर-भेद है कि मुझे आश्चर्य…

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आलोचना की भाषा

अपने सर्जनात्मक रूप में आलोचना-कर्म मूलतः व्यक्तिगत प्रयास है, क्योंकि किसी कृति-संबंधी प्रत्येक…

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आलोचना की संस्कृति और संस्कृति की आलोचना

’आलोचना की संस्कृति’ को ठीक से समझने के लिए संस्कृति की आलोचना जरूरी है और संस्कृति की…

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आलोचना की स्वायत्तता

आलोचना की भाषा शून्य में निर्मित नहीं होती; वह पहले ही से विविध सांस्कृतिक परतों से छनती हुई आती…

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इंडिया की छवि

रोहित से उसने कभी नहीं पूछा कि क्या उसका दिल उससे कभी यह नहीं कहता कि तुम पराए लोगों के बीच रहते…

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इस ब्रह्माण्ड का प्रत्येक अणु देवता है

देख रे, तेरे शास्त्र तुझे धोखा देते हैं। जो तेरे भीतर सत्य है, उसे दबाने को कहते हैं; जो तेरे भीतर…

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उत्तरकुरु और कदलीवन

कोरी सौंदर्य साधना, कोरा सौंदर्यबोध निरर्थक है। इसे शील से जोड़कर ही रचनात्मक और मंगलमय बनाया जा सकता…

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उसके सारे शरीर से स्वच्छ कान्ति प्रवाहित हो रही थी

मैंने इस बार स्वाभाविक संकोच छोड़कर इस कमनीयता की मूर्त्ति की ओर देखा। उसको देखकर अत्यन्त पतित व्यक्ति…

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एक महाश्वेता रात्रि

यह पीपल दार्शनिकों का भी वृक्ष है। भारतीयों के मन पर यह आर्यों के आगमन के पूर्व से ही हावी है। मोहनजोदड़ो-हड़प्पा…

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एक महाश्वेता रात्रि

मेरा जीवहंस ऊपर मँडराता रहा नील व्योम में, नील परमपद के मध्य और नीचे प्रभु के मन-समुद्र से उत्पन्न…

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एकान्त का तप बड़ा तप नहीं है

“एकान्त का तप बड़ा तप नहीं है, बेटा! देखो, संसार में कितना कष्ट है, रोग है, शोक है, दरिद्रता…

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कविता, भगवती महामाया की इच्छा-शक्ति है

देवरात शान्त वाणी में बोले, “कविता, भगवती महामाया की इच्छा-शक्ति है, व्यवहार- जगत् उनकी क्रिया-शक्ति…

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कहाँ जाने एक कवि आ गया

जानती है, अनादि काल से तितली फूल के इर्द-गिर्द चक्कर काट रही है, लता वृक्ष को आच्छादित करके उल्लसित…

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कहीं-न-कहीं मनुष्य-समाज ने अवश्य गलती की है

इस रास्ते से उल्लास और उन्माद चाहे गये हों, अनुराग और औत्सुक्य नहीं गये। यह सब क्यों हो रहा है ?…

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कीचड़ से कमल

सारे मानवीय रिश्ते, सारे भाव, सारी करुणा-प्रेम-सहानुभूति का कारोबार उन मूल्यों या सत्यों पर निर्भर…

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कुछ सुना, कुछ कहा-सब बीत जाता है

कुछ सुना, कुछ कहा-सब बीत जाता है। ऐसे जैसे कभी हुआ ही नहीं हो या किसी और के जीवन में हुआ हो। शब्द…

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कुटज

दुनिया है कि मतलब से मतलब है, रस चूस लेती है छिलका और गुठली फेंक देती है। 
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कोई आदमी जब मरता है

कोई आदमी जब मरता है, तो शायद साल-भर तक उसकी मौजूदगी हर किसी के दिमाग में बनी रहती है। बरसी होने के…

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घर जोड़ने की माया

संप्रदाय-स्थापना का अभिशाप यह है कि उसके भीतर रहनेवाले का स्वाधीन चिंतन कम हो जाता है। संप्रदाय की…

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चन्द्रमा पद्म-मधु से रँगे हुए वृद्ध कलहंस की भाँति

देखते-देखते चन्द्रमा पद्म-मधु से रँगे हुए वृद्ध कलहंस की भाँति आकाशगंगा के पुलिन से उदास भाव से पश्चिम…

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चल मोरवा बारात रे

हमारे साहित्य में ’आत्मा’ का प्रतीक ’हंस’ माना गया है तो ’मन’…

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चित्त तो उचित व्यवहारसै प्रसन्न रहता है

लाला ब्रजकिशोर कहनें लगे, ‘‘मुनासिब रीति सै थोड़े खर्च मैं सब तरहका सुख मिल सक्ता है परंतु…

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छायावाद

‘छायावाद’ की विभिन्न प्रवृत्तियों और विशेषताओं की गणना करने वाले आलोचकों ने भी छायावाद…

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जन्मान्तर के धूम्र-सोपान

’’यह रात है कि अफीम है !’’ कहकर नरेस मिस्त्री रोज सोने के पूर्व करवट बदला…

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जन्मान्तर के धूम्र-सोपान

सृष्टि का आदिम गर्भाधान क्षण भी घोर तुषाराच्छादित अखण्ड रात्रि का क्षण था-एक बिन्दु पर आकर देश-काल…

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जवानों, प्रत्यन्त-दस्यु आ रहे हैं

गान अपभ्रंश भाषा में था। भैरवियों ने गाया--

“अमृत के पुत्रों, नगाधिराज हिमालय की शीतल…

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जहाँ कहीं अपने-आपको उत्सर्ग करने की

जहाँ कहीं अपने-आपको उत्सर्ग करने की, अपने-आपको खपा देने की भावना प्रधान है, वहीं नारी है। जहाँ कहीं…

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जातीय बहिष्कार जाति-मुक्त नहीं करता

अपना पैसा गाँठ में होने के बावजूद लन्दन जाने के लिए मोहनदास को दूसरों से कर्ज लेना पड़ा था। अगर न…

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जितने बँधे-बँधाये नियम और आचार हैं उनमें धर्म अँटता नहीं

मैं आज स्पष्ट देख रहा हूँ कि जितने बँधे-बँधाये नियम और आचार हैं उनमें धर्म अँटता नहीं। वह नियमों…

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जीवन-भर का कैदी, मृत्यु के समय भी कैदी

जिस कमरे में महादेव भाई का शव रखा था, उसे फूलों से सजाया गया था। कुछ घंटों तक सबके दर्शनों के लिए…

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तर्क वस्तु ही गलत है

तर्क वस्तु ही गलत है। भगवान् ने जीवन में करुणा को प्रतिष्ठित करना चाहा था। जिसमें वह करुणा नहीं,…

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तिष्य नक्षत्र, कवि भिक्षु और महापृथिवी

जब जन्म लिये हैं तो पगहा-खूँटा चाहे वह कितना ही सूक्ष्म हवाई क्यों न हो, चाहिए। अतः घर का महत्त्व…

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दर्पण-विश्वासी

दार्शनिकों ने माया-दर्पण का बखान किया है, सन्तों ने ’हिरदय-दरपन’ को धो-पोंछकर निर्मल-प्रसन्न…

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दूसरी परम्परा की खोज

प्रेमचन्द के माध्यम से द्विवेदीजी ने एक प्रकार से हिन्दी जाति के भावबोध की उस विशेषता की ओर संकेत…

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देख रे, तेरा बाप शास्त्र का बड़ा भारी पंडित है

“देख रे, तेरा बाप शास्त्र का बड़ा भारी पंडित है। काव्य का, संगीत का, चित्र का, मूर्त्ति का सहृदय…

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देवि, पावक को कभी कलंक स्पर्श नहीं करता

देवि, पावक को कभी कलंक स्पर्श नहीं करता, दीपशिखा को अन्धकार की कालिमा नहीं लगती, चन्द्र-मण्डल को…

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देह-वल्कल

मेरे विद्याव्रत का आरम्भ उस दिन से नहीं जिस दिन चतुर्वेदी जी ने कान में -ऊँ भूर्भुवः स्वः....’…

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दो नाक वाले लोग

मैं उन्हें समझा रहा था कि लड़की की शादी में टीमटाम में व्यर्थ खर्च मत करो।
    पर वे…

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धन्य ! लालासाहब! धन्य !

‘‘धन्य ! लालासाहब! धन्य ! अब तो आपके सुधरे हुए बिचार हद्द के दरजें पर पहुँच गए’’…

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निर्गुण नक्शे: सबुज-श्याम धरती

मनुष्य के अन्दर शायद स्वर्ण का आकर्षण अधिक प्रबल है, इसी से वह सदैव “एल्डोरेडो“ की कल्पना…

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निर्वासन और नीलकण्ठी प्रिया


यह ‘नित्य अकेलापन‘ रचना-प्रक्रिया की अनिवार्य आवश्यकता है। सृजन के चरम क्षण के…

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पत्नी का भी अपना जीवन होता है

कैसे समझाती कि पत्नी का भी अपना जीवन होता है ? जीवन जीने का हर किसी का एक अपना अन्दाज होता है ? उसने…

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परंपरा और प्रगति

रचना की महानता से ही आलोचना महान होती है। यह छायावादी रचना का वैभव ही था जिसने हिंदी में आलोचना के…

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पश्य देवस्य काव्यम्

तम या कालिमा आदिम रंग है। इसका आदिम वर्ण है सर्वग्रासी। यहाँ तक कि अन्धकार का भी भक्षण कर जाने वाली…

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पार्वती की तपस्या से सच्चे प्रेम के देवता आविर्भूत हुए थे

कालिदास ने प्रेम के देवता को वैराग्य की नयनाग्नि से भस्म नहीं कराया है, बल्कि उसे तपस्या के भीतर…

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पिता ने दूब के नाल के साथ कस्तूरबा का हाथ मोहनदास के हाथ में दिया

फिर पिता गोकुलदास खड़े हुए और समय, कल्प, युग, जम्बूद्वीप, देश, वर्ष, मौसम, दिन, नगर, नक्षत्रों की…

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पुत्र-पौत्र स्त्री जीवन की बड़ी उपलब्धि होती है

शायद पुत्र-पौत्र स्त्री जीवन की उतनी ही बड़ी उपलब्धि होती है जितनी बड़ी एक स्वतंत्रता सेनानी के लिए…

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पुरुष निःसंग है, स्त्री आसक्त

“देख बाबा, तू व्यर्थ की बहस करने जा रहा है। बाबा ने जो कुछ कहा है वह पुरुष का सत्य है। स्त्री…

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प्रकृति को सुनियन्त्रित रूप से चलाने का नाम ही संस्कृति है

“देख रहे हो न, कि मृत्यु सबको निगलने के लिए मुँह बाए खड़ी है, और फिर भी लोग जीना चाहते हैं ?…

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प्रगतिवाद

प्रगतिवाद हिन्दी साहित्य की परम्परा का स्वाभाविक विकास है।
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प्रगतिशील साहित्य कोई स्थिर…

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प्रयोगवाद

प्रयोगवाद उत्तर-छायावाद की समाजविरोधी अतिशय व्यक्तिवादी मनोवृत्ति का ही बढ़ाव है।
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‘वाद’…

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प्रीती के बराबर संसार मैं कौन्सा पदार्थ है

‘‘प्रीती के बराबर संसार मैं कौन्सा पदार्थ है?’’ लाला मदनमोहन कहनें लगे और…

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प्रेमा पुमर्थो महान्

मानवीय प्रवृत्तियों का दमन सामन्ती दमन का ही एक अंग है। अमानवीकरण की यह प्रक्रिया शासक वर्गों के…

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फुटकल पंक्तियाँ

मेघ बरसने के बाद आसमान शान्त और साफ हो जाता है, वैसे ही मन भी रति के बाद निर्मल, शुभ्र और कामनाहीन…

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फुटकल पंक्तियाँ

कविता में जहाँ देवताओं के प्रेम का वर्णन होता था, वह स्थान साधारण मनुष्य ले ले-यह जनतांत्रिक भाव…

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फुटकल पंक्तियाँ

स्नेह बड़ी दारुण वस्तु है, ममता बड़ी प्रचण्ड शक्ति है।
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पर मेरा भाग्य अब भी किसी अदृष्ट…

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फुटकल पंक्तियाँ

इस मन या हृदय का कोई ‘विज्ञान‘ नहीं हो सकता, इसका ‘काव्य‘ ही हो सकता है। Read More

फुटकल पंक्तियाँ

भारतीय किसान के पास ’रोष’ नाम की वस्तु है ही नहीं। वह तो सनातन ’होरी’ है,…

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बदला लेने का तो इस्सै अच्छा दूसरा रास्ता ही नहीं है

‘‘ये बस बातें हँसी खुशी मैं याद आती हैं। क्रोध मैं बदला लिए बिना किसी तरह चित्त का संतोष…

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बहुरूपी


आज का साहित्यकार एक ही प्रतिबद्धता को श्रेय का मार्ग मानता है। पर एकहरी प्रतिबद्धता और एकहरा…

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बा की फुटकल पंक्तियाँ


रूप हो या शान-शौकत, अगर कोई कद्रदान न हो तो वह छीजते-छीजते साकार कुरूपता में बदल जाता है। Read More

भारतीय साहित्य की प्राणधारा और लोकधर्म

भक्ति आन्दोलन को मुसलमानों के विरुद्ध हिन्दुओं की प्रतिक्रिया बताने की जिम्मेदारी मूलतः साम्राज्यवादी…

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भाषा की कमजोरी

वस्तुस्थिति यह है आयुष्मान्, कि शून्यता या निरालम्ब या निर्वाण एक अनुभवगम्य वस्तु है। भाषा की कमजोरी…

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मधु-माधव

वसन्त उल्लास की ऋतु है। वैष्णवों ने इसी उल्लास को रस की दीक्षा का माध्यम बनाया है। इसमें न तो ग्रीष्म…

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मधुर मधुर रसराज


चैत्र का वैदिक नाम मधु है और वैशाख का माधव।
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मनुष्य के मन मैं ईश्वरने अनेक प्रकार की वृत्ति उत्पन्न की हैं

‘‘उपाय करने की कुछ जरूरत नहीं हैं, समय पाकर सब अपनें आप खुल जाता है’’ लाला…

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महाश्रमण, इतना विराग असह्य है

संयम जब अत्यन्त असहज और अप्राकृतिक हो जाता है तो विपरीत ध्रुव की ही जीत होती है। असहज और अप्राकृतिक…

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मानव-देह केवल दण्ड भोगने के लिए नहीं बनी है

“मानव-देह केवल दण्ड भोगने के लिए नहीं बनी है, आर्य ! यह विधाता की सर्वाेत्तम सृष्टि है। यह…

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मुझे सबसे दयनीय, चन्द्रमा में का वह मृग लगा

चन्द्रमा निश्चय ही देर से आकाश पर विचर रहा था। उदय काल में जो एक लालिमा रहा करती है, उसका कहीं कोई…

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मोह मुद्गर

’’भइयाजी, यह अपकर्म का महाभारत है’’ आज उपाध्याय की जबान पर जगदम्बा बैठ गयी…

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यह ‘मिडनाइट चिल्ड्रेन‘ की पीढ़ी है

जयदीप को लगता है कि इस देश में कोई भी बड़े से बड़ा चोर, डाकू, लुटेरा, खूनी नहीं है जो आदर्शों की बात…

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यह दुनिया बेमेल आदमियों और औरतों से भरी पड़ी है

जाने यह देश या कि कहें यह दुनिया बेमेल आदमियों और औरतों से भरी पड़ी है। कुछ लोग नियति मानकर उस बेमेलपन…

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यह पग-पग का बन्धन, श्वास-श्वास का दमन अभिनय ही तो है

जो वास्तव है उसको दबाना और जो अवास्तव है उसका आचरण करना--यही तो अभिनय है। .......... यह पग-पग का…

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रंगमंच का निर्माण

रंगमंच का निर्माण बड़े आडम्बर के साथ हुआ। हजारों कर्मकर उसमें लगाए गए। उन दिनों रंगमंच का निर्माण…

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रस-आखेटक

मैं बीसवीं शती का जीव हूँ। मैं क्षण-भोग का विश्वासी हूँ। हवा, धरती और हरीतिमा ही मेरी नायिकाएँ हैं।…

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रस-आखेटक

विन्ध्याचल की पहाड़ियों में महुआ के काफी जंगल हैं। यहाँ महुआ वन अपने-आप उपजता है और खटीक आदि गरीब…

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रहस्यवाद

रहस्यवाद का एक निश्चित दर्शन है जिसके अनुसार सत्य ‘रहस्य’ है और उसका केवल ‘दर्शन’…

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राजा तो कर्मचारियों की आँख से देखता है

राजा जानश्रुति को आचार्य औदुम्बरायण ने जब सारी बातें बताईं तो वे जैसे सोते से अचकचाकर जागे-“मुझे…

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रूप-विन्यास

छायावादी कवियों ने कभी-कभी व्यंजनागर्भी प्रतीकों का प्रयोग किया। ऐसा प्रायः वहीं हुआ है जहाँ किसी…

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रोहिणी-मेघ

ढूँढ़ना स्वतः एक अमृत-फल है। सारा प्यार ढूँढ़कर पाने में ही है। बिना ढूँढ़ने का श्रम किये प्रिय वस्तु…

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लाला मदनमोहन को थोड़ी देर उस्की बनावट देखनी पड़ी

थोड़ी देर पीछै वह लाला मदनमोहनको लिवानें आया और बड़े शिष्टाचारसै लिवा ले जाकर उन्हैं तकियेके सहारे…

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ले-देकर आदमी के पास एक ही जिन्दगी है

जयगोविन्द पीछे मुड़कर जीवन को देखता है तो लगता है कि यदि आदमी को पता रहता कि उसका भाग्य और उसके देश…

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लोक-ताप से तप्त होना सबसे बड़ा तप है

ऋषि और भी प्रीत जान पड़े। बोले, “साधु वत्स, तुम्हारा संकल्प महान है। तुम अपनी माताजी के साथ…

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वसंत आ गया है

कमजोरों में भावुकता ज्यादा होती होगी।
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वसंत आता…

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वहाँ की शोभाका क्या पूछना

‘‘आह! वहाँ की शोभाका क्या पूछना है? आमके मौर की सुगंधी सै सब अमरैयें महक रही है। उन्की…

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विवाह में जो आपसी बातचीत होती है वही हिंकार है

“प्रजापति ने देवताओं के स्वामी इन्द्र को वामदेव्य साम का रहस्य समझाया था। उन्होंने कहा था,…

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वीर शब्द की व्याख्या

“मैं जानता हूँ, तू वीर-बाला है। जानती है, प्रातृद ने अपने पिता से ‘वीर‘ शब्द की…

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वैष्णव की फिसलन

वैष्णव करोड़पति है। भगवान विष्णु का मंदिर। जायदाद लगी है। भगवान सूदखोरी करते हैं। ब्याज से कर्ज देते…

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व्योमकेश शास्त्री उर्फ हजारीप्रसाद द्विवेदी

दरअसल मुखौटा इसलिए मूल्यवान है कि वह स्वयं एक कलाकृति है और कलाकृति स्वयं मनुष्य से ज्यादा अभिव्यंजक…

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शरद व्योम में हंसपदी ऋचा

शुचि मास अर्थात् क्वार मास। क्वार मास संयम, कौमार्य और पवित्रता का प्रतीक है। इस मास में सूर्य कन्या…

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श्रुतं मे गोपाय

केवल मनुष्य के पास शब्द हैं। मात्र मनुष्य की ही सरस्वती शब्दमयी है। शब्द का स्रोत ‘प्रातिभज्ञान‘…

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सत्य इस समाज-व्यवस्था में प्रच्छन्न होकर वास कर रहा है

जो समाज-व्यवस्था झूठ को प्रश्रय देने के लिए ही तैयार की गई है, उसे मानकर अगर कोई कल्याण-कार्य करना…

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सत्य से च्युत न होना

तुम्हें पूर्ण रूप से शास्त्रज्ञ बनना है, उसके बाद सभी बातों की शास्त्रीय विधि से परीक्षा करने के…

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सभी स्त्रियों को पारिवारिक सम्बन्धों में ही क्यों पुकारा जाता है

“अच्छा माँ, सभी स्त्रियों को पारिवारिक सम्बन्धों में ही क्यों पुकारा जाता है ?“
“अपने…

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संस्कृति और सौन्दर्य

यह आकस्मिक नहीं है कि भारतीय संस्कृति के नाम पर नैतिकता की ध्वजा फहरानेवाले प्रकृति के सौन्दर्य को…

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संस्कृति का शेषनाग

यहाँ पर समझने की बात है कि जिसे सारा देश ‘पूरी‘ कहता है उसे भोजपुरी लोग ‘पूड़ी‘…

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संस्कृति का शेषनाग

आज किसान एक ओर सरकार और बनिये द्वारा, दूसरी ओर श्रमिक-शक्ति की राजनीति द्वारा दो पाटों में फँसकर…

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सिद्धि को साधन समझना कच्चे चित्त की कच्ची कल्पना है

सिद्धि को साधन समझना कच्चे चित्त की कच्ची कल्पना है। ......... मुझे अवधूत अधोरभैरव के वाक्य याद आये,…

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सुकुमार बालिकाओं के लिए महिष-मर्दन सम्भव नहीं है

एक बार उसे लगता था कि उसके पिता ठीक ही कह रहे हैं। महिषमर्दिनी देवी केवल भावों की दुनिया में रह सकती…

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स्त्रियाँ ही रत्नों को भूषित करती हैं

स्त्रियाँ ही रत्नों को भूषित करती हैं, रत्न स्त्रियों को क्या भूषित करेंगे ! स्त्रियाँ तो रत्न के…

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स्थाणीश्वर ने राजलक्ष्मी का अपमान किया है

मुझे स्थाणीश्वर के लम्पट राजकुल के अंतःपुर के विषय में श्रद्धा नहीं है। जहाँ चौर्य-लब्ध अत्याचारिता…

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हर जीवित चीज की एक उम्र होती है

हर जीवित चीज की एक उम्र होती है, वैसे ही हर जड़ चीज की, मसलन एक मकान की भी एक उम्र होती है। यहाँ तक…

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हर व्यक्ति का अपना एक सत्य होता है

“मैं समझता हूँ कि हर व्यक्ति का अपना एक सत्य होता है। तुम्हारा भी है। है न?
“शायद!“ Read More

हर समूह अपने माने हुए सही या गलत के लिए एकजुट होकर लड़ रहा है

आदमियों का हर समूह अपने माने हुए सही या गलत के लिए एकजुट होकर लड़ रहा है-चाहे वह कोई देश हो या जाति…

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हेमन्त की संन्ध्या


हेमन्त का सबसे बड़ा आकर्षण है पत्तियों का पीला पड़ जाना और जरा-सी हवा डोलने पर भू-पतित हो जाना।…

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