मधुर मधुर रसराज

पीछे


चैत्र का वैदिक नाम मधु है और वैशाख का माधव।
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जीवन तो कभी भी शास्त्र की लकीर का फकीर नहीं रहता। वह थोड़ा-बहुत, इधर-उधर संचरण कर ही लेता है।
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मन ही मन्दराचल है, उसमें सर्पवत् लिपटी हुई मेरी कामना ही वासुकि है और इन्द्रिय-इन्द्रिय, स्नायु-स्नायु में बैठे देवता और असुर अविराम मन्थन में लीन हैं।
 

पुस्तक | मराल लेखक | आ0 कुबेर नाथ राय भाषा | खड़ी बोली विधा | निबन्ध
विषय | वसंत,