यह पग-पग का बन्धन, श्वास-श्वास का दमन अभिनय ही तो है

पीछे

जो वास्तव है उसको दबाना और जो अवास्तव है उसका आचरण करना--यही तो अभिनय है। .......... यह पग-पग का बन्धन, श्वास-श्वास का दमन अभिनय ही तो है। ............. एक क्षण में मेरा मन जीवन की इस बन्धन-जड़िमा की ओर चला गया। परन्तु दूसरे ही क्षण मुझे इसकी उत्तम कोटि भी समझ में आ गयी। यह बन्ध नही चारुता है, संयम है। ............ बन्ध नही सौन्दर्य है, आत्मदमन ही सुरुचि है, बाधाएँ ही माधुर्य हैं। नहीं तो यह जीवन व्यर्थ का बोझ हो जाता। वास्तविकताएँ नग्न रूप में प्रकट होकर कुत्सित बन जाती हैं। 

पुस्तक | बाणभट्ट की आत्मकथा लेखक | आ0 हजारी प्रसाद द्विवेदी भाषा | खड़ी बोली विधा | उपन्यास