आधुनिक सन्दर्भ में साहित्यकार की भूमिका
पीछेआज तो सिर्फ दो ही दल हैं इस देश में। एक दल में हैं ठेकेदार, व्यवसायी, अफसर, राजनीतिज्ञ तथा पत्रकार आदि बुद्धिजीवी। दूसरा दल है ‘भकुआ‘ बनकर खड़ा समूचा देश। ऐसी स्थिति में साहित्यकार की भूमिका यही हो सकती है कि किसी राजनीतिक पार्टी या संगठन की जमीन पर खड़ा होने का लालच छोड़ें, राजनीतिज्ञ के ‘नाई बारी भाँट‘ या ‘पवनी‘ बनकर खड़ा होने की आदत छोडें़ और अपने ईमान और अपनी मेधा की स्वतंत्र जमीन पर खड़ा होकर इस देश की इच्छा-शक्ति को निर्बीज, क्षत-विक्षत और विभ्रान्त तथा भ्रष्ट होने से बचावें।