वैष्णव की फिसलन

पीछे

वैष्णव करोड़पति है। भगवान विष्णु का मंदिर। जायदाद लगी है। भगवान सूदखोरी करते हैं। ब्याज से कर्ज देते हैं। वैष्णव दो घंटे भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, फिर गादी-तकिये वाली बैठक में आकर धर्म को धन्धे से जोड़ते हैं। धर्म धन्धे से जुड़ जाय, इसी को ‘योग’ कहते हैं। कर्ज लेने वाले आते हैं। विष्णु भगवान के वे मुनीम हो जाते हैं। कर्ज लेने वाले से दस्तावेज लिखवाते हैं--
    ‘दस्तावेज लिख दी रामलाल वल्द श्यामलाल ने भगवान विष्णु वल्द नामालूम को ऐसा जो कि--’
     वैष्णव बहुत दिनों से विष्णु के पिता के नाम की तलाश में है, पर वह मिल नहीं रहा। मिल जाय तो वल्दियत ठीक हो जाय।
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     वैष्णव सन्न रह गया। शराब यहाँ कैसे पी जायगी ? मैं प्रभु के चरणामृत का प्रबंध तो कर सकता हूँ। पर मदिरा ! हे राम !
     दूसरे दिन वैष्णव ने फिर प्रभु से कहा- प्रभु, वे लोग मदिरा माँगते हैं। मैं आपका भक्त, मदिरा कैसे पिला सकता हूँ ?
     वैष्णव की पवित्र आत्मा से आवाज आई-मूर्ख, तू क्या होटल बिठाना चाहता है ? देवता सोमरस पीते थे। वही सोमरस यह मदिरा है। इसमें तेरा वैष्णव-धर्म कहाँ भंग होता है। सामवेद में 63 श्लोक सोमरस अर्थात् मदिरा की स्तुति में हैं। तुझे धर्म की समझ है या नहीं ?

पुस्तक | दो नाक वाले लोग लेखक | हरिशंकर परसाई भाषा | खड़ी बोली विधा | व्यंग्य