निर्वासन और नीलकण्ठी प्रिया

पीछे


यह ‘नित्य अकेलापन‘ रचना-प्रक्रिया की अनिवार्य आवश्यकता है। सृजन के चरम क्षण के अवसर पर नारी, कवि और पैगम्बर बिलकुल अकेले होते हैं। उनकी सृजन-पीड़ा का साझा कोई नहीं करता, यहाँ तक कि टैगोर का जीवन-देवता भी नहीं। वह तो महज उपस्थित-भर रहता है। उसकी उपस्थिति से बल भले ही मिलता है-पर भोगना तो अकेले-अकेले है। पर यह अकेलापन अभिशप्त स्थिति नहीं। वह अकेलापन जो अभिशप्त है, जो सृजन के हेतु नहीं, किसी शाप के कारण वरण किया है, जो वन्ध्या दुःख-भोग मात्र है, जिससे किसी अजन्मे ‘नये‘ के जन्म की सम्भावना नहीं, वह है ‘निर्वासन‘। यह एक हेय स्थिति है।
 

पुस्तक | प्रिया नीलकण्ठी लेखक | आ0 कुबेर नाथ राय भाषा | खड़ी बोली विधा | निबन्ध