हर व्यक्ति का अपना एक सत्य होता है

पीछे

“मैं समझता हूँ कि हर व्यक्ति का अपना एक सत्य होता है। तुम्हारा भी है। है न?
“शायद!“
“शायद नहीं, निश्चित रूप से है।“
“फिर ?“
“अब यह सत्य अगर विश्वव्यापी सत्य के साथ एकमेक नहीं हो जाता, तो तुम्हारा मार्ग रुद्ध करेगा। तुम वहीं आकर खो जाओगे। मैं ठीक कहता हूँ न ?“
“पूरी बात कह लो तो बताऊँगा।“
“बात अधूरी कहाँ है ? हर व्यक्ति का अपना सत्य जब तक परम वैश्वानर को समर्पित नहीं हो जाता, तब तक अधूरा रहता है, अवरोध उपस्थित करता है, अनन्त सम्भावनाओं के द्वार को बन्द कर देता है।“
“यह बात समझ में आती है।“
“आती है न! अब यह बात भी समझ में आ जाएगी कि पुराण-ऋषियों ने क्यों कहा है कि परम वैश्वानर सब सत्यों का सत्य है, वही ब्रह्म है, वही आत्मा है। तुम्हारा व्यक्तिगत प्रेम परम वैश्वानर के प्रेम की पहली सीढ़ी है। न वह उपेक्षणीय है, न लक्ष्य है। वह भगवान की भेजी हुई एक ज्योति-किरण है जिससे अनन्त सम्भावनाओं के द्वार तक मार्ग साफ दिखाई दे जाता है। ऐसा ही समझकर अब मैं निश्चिन्त हो गया हूँ।“  

पुस्तक | अनामदास का पोथा लेखक | आ0 हजारी प्रसाद द्विवेदी भाषा | खड़ी बोली विधा | उपन्यास