अवरुद्ध त्रेताःप्रतीक्षारत धनुष

पीछे

जहाँ कहीं भी तेज है, दृढ़ता है, अपराजित हृदय है, पवित्रता और न्याय की रक्षा के लिए बाँहें धनुष चढ़ा रही हैं, वहाँ-वहाँ मुझे शर-सन्धान के लिए उद्यत उदात्तशीर्ष त्रेता के दर्शन होते हैं, जिसके भव्य ललाट पर विधाता ने अपनी तीन उँगलियाँ फेरकर अग्नि त्रिपुण्ड अंकित कर दिया है। यह त्रेता अपने उदात्त रूप में भारत में मरा नहीं है। यह अतीत का अंश होते हुए भी प्राणवान् है।

पुस्तक | प्रिया नीलकण्ठी लेखक | आ0 कुबेर नाथ राय भाषा | खड़ी बोली विधा | निबन्ध
विषय | वीरता,