पत्नी का भी अपना जीवन होता है

पीछे

कैसे समझाती कि पत्नी का भी अपना जीवन होता है ? जीवन जीने का हर किसी का एक अपना अन्दाज होता है ? उसने कहा कि वह एक अच्छी पत्नी बनना चाहती है, पर वह यह भी चाहती है कि अपने प्रति भी ईमानदार रहे। यह बात पति की समझ में नहीं आती। पुरुष जो ठहरे!
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नवविवाहिता पत्नी और पति की मानसिकता प्रेमी-प्रेमिका की मानसिकता की तरह होती है। अपना प्रेम ही प्रेम, दूसरे पक्ष का प्रेम वह क्या जाने....!
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भले ही कोई कुछ न जाने लेकिन वह तो जानती है। मनुष्य जब अपना दोष जानता है तो भले ही कोई कुछ न जानता हो, उसके पास अपने को निर्दोष ठहराने का कोई आधार नहीं रह जाता।
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बेरोजगार पति की स्थिति में पत्नी चोर की तरह जीने के लिए बाध्य हो जाती है।
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बाहर जाकर ही पता चलता है कि मर्द आकाशीय परिन्दा होता है जहाँ चाहे उड़कर बैठ जाए, औरत पिंजरे की पंछी बनकर घर में ही चू-चू करके वक्त गुजार देती है। अपने पंखों को निहारती रहती है-कभी खुलेंगे या नहीं, खुलेंगे तो कैसा लगेगा ?
 

पुस्तक | बा लेखक | गिरिराज किशोर भाषा | खड़ी बोली विधा | उपन्यास