फुटकल पंक्तियाँ

पीछे

स्नेह बड़ी दारुण वस्तु है, ममता बड़ी प्रचण्ड शक्ति है।
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पर मेरा भाग्य अब भी किसी अदृष्ट के कंटक में उलझाा हुआ था। जो होना था, वह हो गया; और जो होना चाहिए था, वह न हुआ। ............... मैं जिस बात से बचना चाहता था, उसी से टकराना पड़ा। भाग्य को कौन बदल सकता है ? विधि की प्रबल लेखनी से जो कुछ लिख दिया गया, उसे कौन मिटा सकता है ? अदृष्ट के पारावार को उलीचने में अब तक कौन समर्थ हुआ है ?
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उसे कोई अधिकार नहीं दिया गया है; पर सम्पत्ति दी गयी है। इसीलिए उसमें एक अनुत्तरदायी भोगलिप्सा बढ़ गयी है, जो अब अत्यन्त निकृष्ट अनाचार का रूप धारण कर चुकी है।
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चिन्ता में निमग्न मनुष्य अन्धा होता है।
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बुद्धिमान की नीति मौन होती है। 
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मैं जिसे अन्न समझ रहा था, वह उसकी दृष्टि में महावराह का प्रसाद था। उसको अच्छा या बुरा समझना भक्तिहीन चित्त का विकल्प था। भक्त के लिए तो वह अमृत से श्रेष्ठ था।
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डरना नहीं चाहिए। जिस पर विश्वास करना चाहिए, उस पर पूरा विश्वास करना चाहिए, परिणाम चाहे जो हो। जिसे मानना चाहिए, उसे अन्त तक मानना चाहिए।
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न तो प्रवृत्तियों को छिपाना उचित है, न उनसे डरना कर्त्तव्य है और न लज्जित होना युक्तियुक्त है। .................... किसी से न डरना, गुरु से भी नहीं, मन्त्र से भी नहीं, लोक से भी नहीं, वेद से भी नहीं। 
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राजनीति भुजंग से भी अधिक कुटिल है, आसिधारा से भी अधिक दुर्गम है, विद्युत-शिखा से भी अधिक चंचल है।
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मैं सहज बात को सहज ढ़ंग से ही समझ पाता हूँ। सत्य और असत्य का मेल नहीं हो सकता।
 

पुस्तक | बाणभट्ट की आत्मकथा लेखक | आ0 हजारी प्रसाद द्विवेदी भाषा | खड़ी बोली विधा | उपन्यास