राजा तो कर्मचारियों की आँख से देखता है

पीछे

राजा जानश्रुति को आचार्य औदुम्बरायण ने जब सारी बातें बताईं तो वे जैसे सोते से अचकचाकर जागे-“मुझे प्रजा के कष्ट की बात तो किसी ने नहीं बताई। राजकर्मचारी क्या सो रहे थे ? अन्न उगाहने के समय क्या उन्होंने यह नहीं देखा कि अकाल पड़ा हुआ है ? क्या उनका कर्त्तव्य नहीं था कि वे मुझे सूचना देते ? राजा तो कर्मचारियों की आँख से देखता है। इतना बड़ा अनर्थ हो गया और उन्होंने कुछ बताया ही नहीं!“
आचार्य ने कहा, “महाराज, दोष तुम्हारा भी है और मेरा भी। राजा जब तक स्वयं जागरूक न हो तो राजकर्मचारी शिथिल हो जाते हैं, मुस्तैदी से काम नहीं करते। राजा को चिन्ता में न डालने की आड़ में वे स्वयं निश्चिन्त हो जाते हैं। राजकर्मचारियों को निरन्तर कसते रहना पड़ता है। वह हमने नहीं किया। दोष हमारा भी है, मैं कहूँ कि दोष हमारा ही है!“

पुस्तक | अनामदास का पोथा लेखक | आ0 हजारी प्रसाद द्विवेदी भाषा | खड़ी बोली विधा | उपन्यास