गद्यांश (लेखक - अलका सरावगी)
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>आक्रोश
>आत्मसम्मान
>आदर्श
अपने जीवन में फिर से वापस लौटना या कि आत्मकथा जैसा कुछ लिखना कितनी बड़ी यातना है। जीवन में जहाँ गरमाहट…
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रोहित से उसने कभी नहीं पूछा कि क्या उसका दिल उससे कभी यह नहीं कहता कि तुम पराए लोगों के बीच रहते…
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कुछ सुना, कुछ कहा-सब बीत जाता है। ऐसे जैसे कभी हुआ ही नहीं हो या किसी और के जीवन में हुआ हो। शब्द…
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कोई आदमी जब मरता है, तो शायद साल-भर तक उसकी मौजूदगी हर किसी के दिमाग में बनी रहती है। बरसी होने के…
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जयदीप को लगता है कि इस देश में कोई भी बड़े से बड़ा चोर, डाकू, लुटेरा, खूनी नहीं है जो आदर्शों की बात…
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जाने यह देश या कि कहें यह दुनिया बेमेल आदमियों और औरतों से भरी पड़ी है। कुछ लोग नियति मानकर उस बेमेलपन…
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जयगोविन्द पीछे मुड़कर जीवन को देखता है तो लगता है कि यदि आदमी को पता रहता कि उसका भाग्य और उसके देश…
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हर जीवित चीज की एक उम्र होती है, वैसे ही हर जड़ चीज की, मसलन एक मकान की भी एक उम्र होती है। यहाँ तक…
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आदमियों का हर समूह अपने माने हुए सही या गलत के लिए एकजुट होकर लड़ रहा है-चाहे वह कोई देश हो या जाति…
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