अपने जीवन में फिर से वापस लौटना

पीछे

अपने जीवन में फिर से वापस लौटना या कि आत्मकथा जैसा कुछ लिखना कितनी बड़ी यातना है। जीवन में जहाँ गरमाहट थी, अपनापन था, अब उसे याद करना आज के खालीपन को सौ गुना बढ़ा देता है। जहाँ घबराहट थी या हार थी, उसे याद करना फिर से उसी कष्ट से गुजरना है जिससे किसी तरह हम निकल आए। क्या दीपा को इन सबसे छुट्टी मिल गई होगी ? या मरने के बाद भी पितर अपनों के दुख से उसी तरह व्याकुल होते होंगे जैसे कि जीवित रहने पर होते ? यह मानना मुश्किल है, बचपन से बिना सन्देह मानते रहने के बाद कि आत्मा-वात्मा कुछ नहीं होती। बस आदमी मरा और कार्बन, नाइट्रोजन और आक्सीजन मुक्त होकर हवा, मिट्टी और पानी में मिल गए। पर सचमुच में ऐसा होता हो तो वही ठीक है। कभी तो आदमी इस उथल-पुथल के फेर से छुट्टी पाए।

पुस्तक | जानकीदास तेजपाल मैनशन लेखक | अलका सरावगी भाषा | खड़ी बोली विधा | उपन्यास