इंडिया की छवि

पीछे

रोहित से उसने कभी नहीं पूछा कि क्या उसका दिल उससे कभी यह नहीं कहता कि तुम पराए लोगों के बीच रहते हो। शायद नई पीढ़ी को ऐसा कुछ नहीं लगता हो। इंडिया की छवि भी आखिर पिछले चालीस सालों में बहुत बदल गई है। रोहित का तो रंग भी उसकी तरह साफ नहीं है, पर आज के ब्राऊन मैन का दर्जा उन्नीस सौ अड़सठ के ब्राऊन मैन की तुलना में काफी ऊपर उठ गया है। आखिर पूरी सिलिकॉन वैली एशियाई लोगों से भरी है।

पुस्तक | जानकीदास तेजपाल मैनशन लेखक | अलका सरावगी भाषा | खड़ी बोली विधा | उपन्यास