हेमन्त की संन्ध्या

पीछे


हेमन्त का सबसे बड़ा आकर्षण है पत्तियों का पीला पड़ जाना और जरा-सी हवा डोलने पर भू-पतित हो जाना। पत्तियों का झरना धरती के सौन्दर्य की करुणतम अवस्था है। करुणा में एक उदास सौन्दर्य की उपलब्धि एक सर्वसाधारण अनुभव है। करुणा विषाद की रोमान्टिक अवस्था है। वही अनुभूति जब क्रूर रूप में घटित होकर कठोर सत्य बन जाती है तो हम उसे विषाद कहते हैं। मृत्यु का बोध विषाद है, करुणा नहीं। करुणा किसी-न-किसी रूप में जीवन से संलग्न रहती है। इसमें आस्था का एक क्षीण धागा बँधा रहता है।
     विषाद में सारे मूल्य अर्थहीन हो जाते हैं। आधुनिक युग को हम विषाद का युग कह सकते हैं। आज जो घटित हो रहा है वह ट्रेजेडी नहीं। ट्रेजेडी से तो मनुष्य का धरातल सदैव ऊँचा उठता है। हमारा युग स्नेह और प्रीति में तो रिक्त है ही, करुणा में भी यह अति दरिद्र है। यह इतना दीन हो चुका है कि इसकी अन्तिम पूँजी- विषाद-भी धीरे-धीरे चुक रही है और इसके शेष हो जाने पर यह आत्मघात से भी बुरी अवस्था होगी।
 

पुस्तक | प्रिया नीलकण्ठी लेखक | आ0 कुबेर नाथ राय भाषा | खड़ी बोली विधा | निबन्ध