सुकुमार बालिकाओं के लिए महिष-मर्दन सम्भव नहीं है
पीछेएक बार उसे लगता था कि उसके पिता ठीक ही कह रहे हैं। महिषमर्दिनी देवी केवल भावों की दुनिया में रह सकती है। तथ्यों की दुनिया में सुकुमार बालिकाओं के लिए महिष-मर्दन सम्भव नहीं है। सिंहवाहिनी देवी ही उपास्य हो सकती हैं। जो सिंह के समान पराक्रमी हैं, अकुतोभय हैं, सत्त्ववान हैं, उनके भीतर जो शक्ति काम करती है, वही सिंहवाहिनी है।................... पिता कहते हैं, यही सिंहवाहिनी देवी लड़कियों की उपास्या हैं। लेकिन फिर उसके मन में प्रश्न उठता, उपासना का क्या अर्थ है? केवल पुरुष-शक्ति की पूजा ही क्या स्त्रीधर्म है? सिंहवाहिनी की उपासना का मतलब क्या इतना ही है कि महिष-मर्दन का काम पुरुषों पर छोड़कर स्त्रियाँ उनकी आरती उतारा करें? स्त्रियों का धर्म क्या आगे बढ़कर अधर्माचार का विध्वंस करना नहीं है? स्त्री को पुरुष की सहधर्मिणी बनना पड़ता है। यह कैसा सहधर्म है कि पुरुष युद्ध करें और स्त्रियाँ उनकी आरती उतारती रहें ? मृणाल का मन ऐसा नहीं मानना चाहता। सहधर्म में महिष-मर्दन भी शामिल होना चाहिए। देवी सिंहवाहिनी भी हैं और महिषमर्दिनी भी। पिताजी क्यों इस बात को मानने में कुंठा अनुभव करते हैं! कदाचित् उनके मन में दुर्वृत्त गुंडों के पशुबल पर अधिक विश्वास है, स्त्रियों के आत्मबल पर कम। मगर पिताजी तो सदा आत्मबल की ही सराहना करते हैं। कहीं कोई मोह तो उनके मन में नहीं आ गया है ?