स्त्रियाँ ही रत्नों को भूषित करती हैं

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स्त्रियाँ ही रत्नों को भूषित करती हैं, रत्न स्त्रियों को क्या भूषित करेंगे ! स्त्रियाँ तो रत्न के बिना भी मनोहारिणी होती हैं; परन्तु स्त्री का अंग-संग पाये बिना रत्न किसी का मनहरण नहीं करते। ..................... धर्म-कर्म, भक्ति-ज्ञान, शान्ति-सौमनस्य कुछ भी नारी का संस्पर्श पाये बिना मनोहर नहीं होते--नारी-देह वह स्पर्श-मणि है, जो प्रत्येक ईंट-पत्थर को सोना बना देती है। 

पुस्तक | बाणभट्ट की आत्मकथा लेखक | आ0 हजारी प्रसाद द्विवेदी भाषा | खड़ी बोली विधा | उपन्यास