ले-देकर आदमी के पास एक ही जिन्दगी है

पीछे

जयगोविन्द पीछे मुड़कर जीवन को देखता है तो लगता है कि यदि आदमी को पता रहता कि उसका भाग्य और उसके देश या शहर का भाग्य कौन-सी करवट लेनेवाला है, तो वह शायद ही वह रास्ता पकड़ता जो उसने पकड़ा था। ले-देकर आदमी के पास एक ही जिन्दगी है और उसमें जो गलत-सलत निर्णय हो गया, उसे ढोने और भुगतने के अलावा कोई रास्ता नहीं। शायद इसीलिए लोग पंडितों और ज्योतिषियों के इतने चक्कर लगाते हैं। इक्कीसवीं सदी में एक तरफ कम्प्यूटर और मोबाइल हर धोबी-सब्जीवाले और दूधवाले के पास है और बच्चे ‘गूगल‘ कर अपना होमवर्क कर रहे हैं, पर टी.वी. में बेजान दारुवाला ग्रह-नक्षत्रों की बात कर न जाने कितने पैसे कमा रहा है। अखबारों में विज्ञापन भरे पड़े हैं जो आपकी हर समस्या तंत्र-मंत्र-रत्न से एक दिन में सुलझाने का दावा कर रहे हैं। इस देश में इन सबकी दुकानें बेधड़क चल रही हैं तो शायद इसीलिए कि यहाँ आप अपने भाग्य के अलावा किसी पर भरोसा नहीं कर सकते।

पुस्तक | जानकीदास तेजपाल मैनशन लेखक | अलका सरावगी भाषा | खड़ी बोली विधा | उपन्यास