पिता ने दूब के नाल के साथ कस्तूरबा का हाथ मोहनदास के हाथ में दिया

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फिर पिता गोकुलदास खड़े हुए और समय, कल्प, युग, जम्बूद्वीप, देश, वर्ष, मौसम, दिन, नगर, नक्षत्रों की स्थिति, वह स्थान जहाँ विवाह सम्पन्न हो रहा था, की घोषणा की। सब देवताओं को स्मरण करके पिता ने कहा, ‘मैं अपनी स्वस्थ पुत्री कस्तूर का हाथ श्रीमान मोहनदास पुत्र माननीय करमचंद जी के छोटे पुत्र को सौंपता हूँ और अपनी ममता को छोड़कर, अपने समस्त अधिकारों का परित्याग करता हूँ जो मेरे और मेरी पत्नी के पास, माता-पिता के रूप में अब तक सुरक्षित थे।’ एक हल्की-सी सिसकी सुनाई पड़ी। पिता ने दूब के नाल के साथ कस्तूरबा का हाथ मोहनदास के हाथ में दिया। वर पक्ष ने हर्ष ध्वनि की। कन्या पक्ष के लोगों के हृदय भर आए।

पुस्तक | बा लेखक | गिरिराज किशोर भाषा | खड़ी बोली विधा | उपन्यास