अखबार के एडीटर की इस लिखावट सै क्या, क्या बातें मालूम होती हैं

पीछे

एक अखबार के एडीटर की इस लिखावट सै क्या, क्या बातें मालूम होती हैं ? प्रथम तो यह है कि हिंदुस्थान मैं बिद्या, सर्व साधारण की अनुमति जान्नें का, और देशान्तर के वृतान्त जान्ने का, और देशोन्नति के लिए देश हितकारी बातों पर चर्चा करनें का व्यसन अभी बहुत कम है। विलायत की आबादी हिंदुस्थान की आबादी सै बहुत थोड़ी हैं तथापि वहाँ अखबारों की इतनी बृद्धि है कि बहुत से अखबारों की डेढ़, डेढ़ दो लाख कापियाँ निकलती हैं। वहाँ के स्त्री, पुरुष, बूढ़े, बालक, गरीब, अमीर सब अपनें देश का वृतान्त जान्ते हैं और उस्पर वाद-विवाद करते हैं। किसी अखबार मैं कोई नई बात छपती है तो तत्काल उस्की चर्चा सब देश मैं फैंल जाती हैं और देशान्तर को तार दौड़ जाते हैं। परंतु हिंदुस्थान मैं ये बात कहाँ ? यहाँ बहुत से अखबारों की पूरी दो, दो सौ कापियाँ भी निकलतीं! और जो निकलती हैं उन्मैं भी जान्नें के लायक बातैं बहुत ही कम रहती हैं क्योंकि बहुतसे एडीटर तो अपना कठिन काम सम्पादन करनें की योग्यता नहीं रखते और वलायत की तरह उन्को और विद्वानों की सहायता नहीं मिल्ती, बहुत सै जान बूझकर अपना काम चलानें के लिए अजान बनजाते हैं इसलिए उचित रीति सै अपना कर्तव्य संपादन करनें वाले अखबारों की संख्या बहुत थोड़ी है पर जो है उस्को भी उत्तेजना देनेंवाला और मन लगाकर पढ़नें वाला कोई नहीं मिल्ता। बड़े, बड़े अमीर, सौदागर, साहूकार, जमींदार, दस्तकार, जिन्की हानि, लाभ काऔर देशों सै बड़ा संबंध है वह भी मन लगाकर अखबार नहीं देखते बल्कि कोई, कोई तो अखबार के एडीटरों को प्रसन्न रखनें के लिए अथवा गाहकों के सूचीपत्र मैं अपना नाम छपवानें के लिए अथवा अपनी मेज को नए, नए अखबारों सै सुशोभित करनें के लिए अथवा किसी समय अपना काम निकाल लेनें के लिए अखबार खरीदते हैं!  

पुस्तक | परीक्षा गुरु लेखक | लाला श्रीनिवास दास भाषा | खड़ी बोली विधा | उपन्यास