रोहिणी-मेघ

पीछे

ढूँढ़ना स्वतः एक अमृत-फल है। सारा प्यार ढूँढ़कर पाने में ही है। बिना ढूँढ़ने का श्रम किये प्रिय वस्तु की अनुपमता और अमूल्यता का बोध हो ही नहीं सकता। इसी ढुँढ़वाने की मौज के लिए ही प्रेेमिका, कवि और ईश्वर फरार की तरह रहते हैं, छिप-छिप कर हमें देखते हैं, साथ-साथ चलते हैं पर गिरफ्त में नहीं आते। वह प्रेमिका, वह कवि और वह ईश्वर तब और मोहक, और स्वादिष्ट, और अनिवार्य हो उठते हैं। यदि प्रेमिका असली है, कवि असली है, ईश्वर असली है तो उन्हें हम कभी भी मुठ्ठी में पकड़कर तौल नहीं पाएँगे। वे निरन्तर अतुलनीय रह जाएँगे। वे सदैव साथ हैं पर सदैव ओझल हैं। इसी से वे बासी नहीं पड़ते। इसी से वे मामूली बनकर अपना मूल्य नहीं खोते। पैस्कल ने एक जगह कहा हैः ’’ईश्वर प्रत्येक मनुष्य के साथ फरार की तरह चल रहा है।’’ जब मैं ईश्वर को प्रेमिका के रूप में देखता हूँ तो पैस्कल की यह उक्ति एक दिव्य आलोक से प्रकाशित हो उठती है।

पुस्तक | रस-आखेटक लेखक | आ0 कुबेर नाथ राय भाषा | खड़ी बोली विधा | निबन्ध