विवाह में जो आपसी बातचीत होती है वही हिंकार है

पीछे

“प्रजापति ने देवताओं के स्वामी इन्द्र को वामदेव्य साम का रहस्य समझाया था। उन्होंने कहा था, ‘विवाह में जो आपसी बातचीत होती है वही हिंकार है; सबको सूचित करना प्रस्ताव है; पति-पत्नी का साथ शयन उद्गीथ है, अलग-अलग शयन प्रतिहार है, प्रेमपूर्वक जीवन बिताना निधन है(निधन अर्थात् व्रत-समाप्ति)।‘ इस प्रकार स्त्री और पुरुष के प्रेमी-युगल के रूप में वामदेव्य साम पिरोया हुआ है। यही पंचविध वामदेव्य साम है। जो व्यक्ति प्रेमी-युगल में इस प्रकार वामदेव्य साम को जान लेता है, पुत्र-पौत्र-समन्वित हो पूर्णायु प्राप्त करता है, उज्ज्वल जीवन व्यतीत करता है, प्रजा, पशु और कीर्त्ति पाकर महान होता है। कोई स्त्री यदि प्रेमपूर्वक निकट आती है तो उसका परित्याग नहीं करना चाहिए। विवाह-सूत्र में आबद्ध होकर पवित्र-दाम्पत्य व्रत का निर्वाह करना चाहिए। यह मत भूलना कि यह व्रत है! यह व्रत है!“

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“देखो, तुमने धर्मसूत्रों में शब्द पढ़े होंगे-एक विवाह है, दूसरा उद्वाह। आजकल दोनों शब्दों का एक ही अर्थ समझा जाता है। दोनों के अर्थों में कोई भेद है, इसे कोई जानता ही नहीं। विवाह धर्म-सम्मत होता है और शास्त्र के नियमों के अनुसार मान्य भी। उद्वाह भी ऐसा ही होता है, परन्तु उद्वाह में पति पत्नी को और पत्नी पति को ऊपर की ओर वहन करती है, अर्थात् परस्पर की आध्यात्मिक चेतना को परिष्कृत करती है। माताजी ने बताया था कि अगर ऐसी पत्नी मिले जो आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाए, तो उससे विवाह नहीं, उद्वाह कर लेना।“    
 

पुस्तक | अनामदास का पोथा लेखक | आ0 हजारी प्रसाद द्विवेदी भाषा | खड़ी बोली विधा | उपन्यास