प्रीती के बराबर संसार मैं कौन्सा पदार्थ है

पीछे

‘‘प्रीती के बराबर संसार मैं कौन्सा पदार्थ है?’’ लाला मदनमोहन कहनें लगे और सब तरह के सुख को द्रव्य सै मिल सक्ते हैं पर प्रीती का सुख सच्चे मित्र बिना किसी तरह नहीं मिल्ता जिस्नें संसार मैं जन्म लेकर प्रीति का रस नहीं लिया उस्का जन्म लेना बृथा है इसी तरह जो लोग प्रीति करके उस्पर द्रढ़ नहीं वह उस्के रस सै नावाकिफ है।’’
     ‘‘निस्संदेह! प्रीति का सुख ऐसा ही अलौकिक है। संसारमैं जिन लोगों को भोजन के लिए अन्न और पहनने के लिए वस्त्र तक नहीं मिल्ता उन्को भी अपनें दुःख-सुख के साथी प्राणोपम मित्र के आगे अपना दुःख रोकर छाती का बोझ हल्का करने पर, अपने दुखों को सुन, सुन कर उस्के जी भर आनें पर, उस्के धैर्य देने पर, उस्के हाथ से अपनी डबडबाई हुई आँखों के आँसू पुछ जानें पर, जो संतोष होता है वह किसी बड़े राजा को लाखों रुपे खर्च करनें सै भी नहीं हो सक्ता’’ लाला हरदयाल नें कहा।
 

पुस्तक | परीक्षा गुरु लेखक | लाला श्रीनिवास दास भाषा | खड़ी बोली विधा | उपन्यास