जन्मान्तर के धूम्र-सोपान

पीछे

सृष्टि का आदिम गर्भाधान क्षण भी घोर तुषाराच्छादित अखण्ड रात्रि का क्षण था-एक बिन्दु पर आकर देश-काल दोनों स्तब्ध हो गये थे और दोनों एक आकृतिहीन, विराट्-व्यापी तुषार-समुद्र द्वारा अभिव्यक्त हो रहे थे। सारा वातावरण एक अधीर गर्भ-गुहा, एक अधीर योनि की तरह प्रतीक्षा के चरम-बिन्दु पर स्थिर हो गया था और उसी सघन तुषाराच्छादित आदिम अखण्ड राशि के मध्य सोम और अग्नि, शीत और ऊष्मा के परस्पर सम्भोग से जीवन का बीजारोपण हुआ। मेरे मन में मिस्त्री की उक्ति इसी आदिम अखण्ड माघ रात्रि की कल्पना जगाती है। स्तब्ध, शान्त, अक्षुब्ध हिरण्यगर्भ-सा वातावरण अचानक काम के तीर से विद्ध हो जाता है, और अक्षुब्ध हिरण्यगर्भ स्थिति के बिखराव का प्रथम क्षण उपस्थित हो जाता है। तब चाहे अग्नि कहें या आदित्य कोई उस आदिमतुषार के मध्य पुरुष-तत्व का प्रवेश कराता है। फिर एक दिन सृष्टि की अधीर महामुद्रा का कमल-कोरक धीरे-धीरे मुँह खोलता है और तब से आज तक यह त्रिगुणा सृष्टि-देवता निरन्तर गर्भाधान और निरन्तर प्रसव में लीन है, फलतः इसकी महामुद्रा निरन्तर निरावरण रूप में है जिसे अथर्ववेद ’महानग्नी’ ’दिगम्बरा’ कहकर प्रणाम करता है। यहाँ यह नग्नता अश्लीलता नहीं ! गर्भाधान और प्रसव का क्षण निरावरण-क्षण रहता ही है। यह एक विराट् बिम्ब है जो आदिम उदात्तता और भय का संचार करता है। इसमें कामलोलुपता का भाव कहाँ ? नरेस मिस्त्री की उक्ति को इस विराट् सन्दर्भ में देखने पर मुझे प्रतिदिन की मामूली माघ की शिशिर रात्रि उस आदिम रात्रि, प्रथम गर्भाधान क्षण की रात्रि की वैसे ही ’हमशक्ल’ या समानरूपा लगती है जैसे बाइबिल के अनुसार आदमी ईश्वर का ’हमशक्ल’ है, (फिर भी ईश्वर की मानवाकृति हिन्दू मूर्तियों को ये बाइबिलवाले गाली देते हैं !) ठीक वैसी ही धीर, प्रशान्त, मौन, गहरे-अति-गहरे उतरती हुई, प्रस्तुति के चरम क्षण-सी, गर्भाधान क्षण-सी स्तब्ध रात ! माघ के निशीथ-क्षण में अकेले जगकर सारी देह को कम्बल में लपेटकर बीस या पन्द्रह मिनिट बरामदे में बैठना और सारे अनुभव-प्रवाह को पीना, मानो सृष्टि-जन्म के आदिम क्षणों का साक्षात्कार करना है। यह एक महत्-अनुभूति है। इसका अनुभव हमें विराट् का अंग-स्पर्श करा देता है, उसके अर्थ का जिह्वा पर आस्वादन करा देता है। हम अनुभव करते हैं कि हम ’कामायनी’ के प्रथम सर्ग से पूर्व के बिन्दु पर खड़े हैं।

पुस्तक | रस-आखेटक लेखक | आ0 कुबेर नाथ राय भाषा | खड़ी बोली विधा | निबन्ध