पश्य देवस्य काव्यम्

पीछे

तम या कालिमा आदिम रंग है। इसका आदिम वर्ण है सर्वग्रासी। यहाँ तक कि अन्धकार का भी भक्षण कर जाने वाली कालिमा। इसे ही महातमसा कहा गया है। आदिम जड़ प्रकृति इसी महातमसा रूप में थी। परन्तु जब इसमें चैतन्य का प्रथम प्रवेश हुआ, तो उस प्रथम स्पन्द काल में ही इसका रूप साँवला हो गया। इसी से ‘काला‘ रंग आदिम जड़ का प्रतीक है तो श्यामाभ या श्यामला आदिम सचैतन्य प्रकृति का। चैतन्य का मौलिक वर्ण है निरंजन उज्ज्वल श्वेत। परन्तु यह लीला-वश आता है सूचीवेध्य काली जड़ प्रकृति के स्पर्श में और तब जड़ प्रकृति की कालिमा में एक कान्ति फूटती है। उसका रूप कान्तिमय अर्थात् ‘श्यामाभ‘ हो उठता है। और वह चैतन्य भी काले और श्वेत दोनों से भिन्न एक नया अपूर्व वर्ण ले लेता है, नील वर्ण, जो उसके सगुण स्वभाव का द्योतक है।
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मायाजल के प्रवाह में बिम्ब काँप रहे हैं, गोया काम-क्रोध के दबाव से यह बिम्ब-जगत् भी निरन्तर टेढ़ा-मेढ़ा हो रहा है।

 

पुस्तक | मराल लेखक | आ0 कुबेर नाथ राय भाषा | खड़ी बोली विधा | निबन्ध