जवानों, प्रत्यन्त-दस्यु आ रहे हैं

पीछे

गान अपभ्रंश भाषा में था। भैरवियों ने गाया--

“अमृत के पुत्रों, नगाधिराज हिमालय की शीतल छाती में आज हलचल दिखायी दे रही है। कोई जानता है कि पार्वती-गुरु के हृदय में आज इतनी व्याकुलता क्यों है ? जवानों, प्रत्यन्त-दस्यु आ रहे हैं! 
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आर्यावर्त्त के तरुणों, जीना सीखो, मरना सीखो, इतिहास से सीखना सीखो। आर्यावर्त्त नाश के कगार पर है। जवानों, प्रत्यन्त-दस्यु आ रहे हैं!
राजाओं का भरोसा करना प्रमाद है, राजपुत्रों की सेना का मुँह ताकना कायरता है। आत्म-रक्षा का भार किसी एक जाति पर छोड़ना मूर्खता है। जवानों, प्रत्यन्त-दस्यु आ रहे हैं!
समस्त आर्यावर्त्त एक है- एक समाज, एक प्राण, एक धर्म। देशरक्षा सबका प्रधान धर्म है। जवानों, प्रत्यन्त-दस्यु आ रहे हैं!
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अमृत के पुत्रों, आँधी की भाँति बहो, तिनके की भाँति म्लेच्छ-वाहिनी को को उड़ा ले जाओ। संकट के भय से कातर होना तरुणाई का अपमान है। जवानों, प्रत्यन्त-दस्यु आ रहे हैं!
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अमृत के पुत्रों, मृत्यु का भय मिथ्या है, जीने के लिए मरो, मरने के लिए जिओ; नगाधिराज तुम्हारी ओर ताक रहे हैं! जवानों, प्रत्यन्त-दस्यु आ रहे हैं!
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अमृत के पुत्रों, मृत्यु का भय मिथ्या है, कर्त्तव्य में प्रमाद करना पाप है, संकोच और दुविधा अभिशाप है। जवानों, प्रत्यन्त-दस्यु आ रहे हैं!
विषय- कर्त्तव्य, ओज

पुस्तक | बाणभट्ट की आत्मकथा लेखक | आ0 हजारी प्रसाद द्विवेदी भाषा | खड़ी बोली विधा | उपन्यास