यह दुनिया बेमेल आदमियों और औरतों से भरी पड़ी है

पीछे

जाने यह देश या कि कहें यह दुनिया बेमेल आदमियों और औरतों से भरी पड़ी है। कुछ लोग नियति मानकर उस बेमेलपन को झेलते रहते हैं। कुछ लोग जिन्दगी को ऐसे ही चले नहीं जाने देना चाहते और किसी तरह की भरपाई खोजने में भटकते रहते हैं। जयगोविन्द सोचता रहा कि उसने जो खो दिया है, उसकी जगह क्या कोई भर सकता है? क्या उसके ऐसे सोचने में ही कोई गड़बड़ी है कि कोई और भी हो आस-पास? यदि सचमुच अमेरिका का वायरस उसके अन्दर हमेशा के लिए घुस बैठता, तो शायद वह ऐसा न सोचता। वहाँ लोग अकेले ही रहकर खुश रह पाते हैं। इस देश में न कोई अकेला रहना चाहता है, न किसी को अकेले रहने देना चाहता है। और खुदा न खास्ता, कोई अकेला हो जाए, तो वह बेचारा है या आफत। 

पुस्तक | जानकीदास तेजपाल मैनशन लेखक | अलका सरावगी भाषा | खड़ी बोली विधा | उपन्यास