पार्वती की तपस्या से सच्चे प्रेम के देवता आविर्भूत हुए थे

पीछे

कालिदास ने प्रेम के देवता को वैराग्य की नयनाग्नि से भस्म नहीं कराया है, बल्कि उसे तपस्या के भीतर से सौन्दर्य के हाथों प्रतिष्ठित कराया है। पार्वती की तपस्या से सच्चे प्रेम के देवता आविर्भूत हुए थे। जो भस्म हुआ, वह आहार-निद्रा के समान जड़ शरीर का विकार्य धर्म-मात्र था। वह दुर्वार था; परन्तु देवता नहीं था। देवता दुर्वार नहीं होता, देवि। 

पुस्तक | बाणभट्ट की आत्मकथा लेखक | आ0 हजारी प्रसाद द्विवेदी भाषा | खड़ी बोली विधा | उपन्यास
विषय | प्रेम,