देख रे, तेरा बाप शास्त्र का बड़ा भारी पंडित है

पीछे

“देख रे, तेरा बाप शास्त्र का बड़ा भारी पंडित है। काव्य का, संगीत का, चित्र का, मूर्त्ति का सहृदय पारखी है। मगर मैं उसकी कमजोरी जान गया हूँ। वह इन बातों को तैयार माल की तरह देखता है। सुनार जैसे अँगूठी बनाकर माल ले आता है तो ग्राहक जैसे देखता है, उसी प्रकार। मगर ज्ञान या रस तैयार माल की तरह नहीं होते। वे इतिहास से पलते हैं, और इतिहास को बनाते हैं; मगर मेरे मन में जो कुछ है उसे मैं प्रकट नहीं कर पाता। तैयार माल का दाम आँकनेवाली बुद्धि मुझे मार गिराती है। अनपढ़ हूँ, क्या करूँ! मगर जानता हूँ कि ठीक मैं कहता हूँ। सो हार तो जाता हूँ, पर हार मानता नहीं। उसने तुझे कविता और व्यवहार का जो भेद बताया है न, वह उसी तैयार माल का दाम आँकनेवाली बुद्धि से। समझ गई, बिटिया रानी! ले, अब तेरा आवश्यक प्रश्न और भी उलझ गया होगा।“ कहकर सुमेर काका उठ पड़े। 

पुस्तक | पुनर्नवा लेखक | आ0 हजारी प्रसाद द्विवेदी भाषा | खड़ी बोली विधा | उपन्यास