वहाँ की शोभाका क्या पूछना

पीछे

‘‘आह! वहाँ की शोभाका क्या पूछना है? आमके मौर की सुगंधी सै सब अमरैयें महक रही है। उन्की लहलही लताओं पर बैठकर कोयल कुहुकती रहती है। घनघोर वृक्षों की घटासी छटा देखकर मोर नाचा करते हैं। नीचे झरनाझरता है ऊपर बेल और लताओं के मिलनें सै तरह, तरह की रमणीक कुँजै और लता मंडप बन गए हैं रंग, रंग के फूलों की बहार जुदी ही मनकों लुभाती है। फूलों पर मदमाते भौरों की गुँजार और भी आनन्द बढ़ाती है। शीतल मंद सुगंधित हवा सै मन अपनें आप खिल जाता है निर्मल सरोवरों के बीच बारहदरी मैं बैठकर चद्दर और फुआरों की शोभा देखने सै जी कैसा हरा हो जाता है? वृक्षों की गहरी छाया मैं पत्थर के चटानों पर बैठकर यह बहार देखनें सै कैसा आनन्द आता है?’’ पंडित पुरुषोत्तमदास नें कहा। 

पुस्तक | परीक्षा गुरु लेखक | लाला श्रीनिवास दास भाषा | खड़ी बोली विधा | उपन्यास