सत्य से च्युत न होना
पीछेतुम्हें पूर्ण रूप से शास्त्रज्ञ बनना है, उसके बाद सभी बातों की शास्त्रीय विधि से परीक्षा करने के बाद तुम्हारे अन्तर्यामी वैश्वानर जैसा कहें, वैसा ही करो। यह कभी मत भूलना कि ऐसा तप वास्तविक तप नहीं है जिसमें समस्त प्राणियों के सुख-दुःख से अलग रहकर केवल अपने-आप की मुक्ति का ही सपना देखा जाता है। सारा चराचर जगत् उसी परम वैश्वानर का प्रत्यक्ष विग्रह है जिसका एक अंश तुम्हारे अन्तरतर में प्रकाशित हो रहा है। सत्य से च्युत न होना, धर्म से च्युत न होना, निखिल चराचररूप परम वैश्वानर को न भूलना।