काव्यांश (भाषा - खड़ी बोली )
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ऊँच-नीच का भेद न माने, वही श्रेष्ठ ज्ञानी है
ऊँच-नीच का भेद न माने, वही श्रेष्ठ ज्ञानी है,
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एक यही अरमान गीत बन, प्रिय, तुमको अर्पित हो जाऊँ
एक यही अरमान गीत बन, प्रिय, तुमको अर्पित हो जाऊँ।
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द्वन्द्व-युद्ध के लिए पार्थ को फिर उसने ललकारा
द्वन्द्व-युद्ध के लिए पार्थ को फिर उसने ललकारा,
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परशु और तप, ये दोनों वीरों के ही होते श्रृंगार
परशु और तप, ये दोनों वीरों के ही होते श्रृंगार,
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पुष्प-गुच्छ-माला दी सबने, तुमने अपने अश्रु छिपाए
पुष्प-गुच्छ-माला दी सबने, तुमने अपने अश्रु छिपाए।
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मेरी तो हर साँस मुखर है, प्रिय, तेरे सब मौन सँदेसे
मेरी तो हर साँस मुखर है, प्रिय, तेरे सब मौन सँदेसे।
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स्वर्ग भीख माँगने आज, सच ही, मिट्टी पर आया
समझा, तो यह और न कोई, आप स्वयं सुरपति हैं,
देने…