प्रतिजन को करो सफल

पीछे

        प्रतिजन को करो सफल।
        जीर्ण हुए जो यौवन,
        जीवन से भरो सकल।
नहीं राजसिक तन-मन,
करो मुक्ति के बन्धन,
नन्दन के कुसुम-नयन
खोलो मृदु-गन्ध-विमल।
        जागरूक कलरव से
        भरें दिशाएँ स्तव से,
        सरसी के नव, नव से,
        मुदे हुए खुले कमल।
रँगे गगन, अन्तराल,
मनुजोचित उठे भाल,
छल का छुट जाय जाल,
देश मनाये मंगल।       

पुस्तक | बेला कवि | सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला भाषा | खड़ी बोली रचनाशैली | गीत छंद |