अन्तस्तल से यदि की पुकार

पीछे

        अन्तस्तल से यदि की पुकार,
        सब सहते साहस से बढ़कर
        आयेंगे, लेंगे भी उबार।
विज्ञान झुकायेगा आँखें;
वायुयान की पाछे पाँखें;
सुलझेंगी मन-मन की माखें;
ज्योतिर्जग का होगा सुधार।
        सादा भोजन, ऊँचा जीवन
        होगा चेतन का आश्वासन;
        हिंसा को जीतेंगे, सज्जन;
        सीधी कपिला होगी दुधार।
अपने ही पैरों ठहरेंगे;
अपनी ही गरजों घहरेंगे;
अपनी ही बूँदों छहरेंगे;
अपनी ही रिमझिग तू-तुकार।
        छूटेगी जग की ठग-लीला;
        होंगी आँखें अन्तःशीला;
        होगा न किसी का मुँह पीला;
        मिट जायेगा लेना उधार।                 
 

पुस्तक | बेला कवि | सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला भाषा | खड़ी बोली रचनाशैली | गीत छंद |