याचना नहीं, अब रण होगा

पीछे

‘‘हित-वचन नहीं तूने माना,
मैत्री का मूल्य न पहचाना,
तो ले, मैं भी अब जाता हूँ,
अंतिम संकल्प सुनाता हूँ।
                     याचना नहीं, अब रण होगा,
                     जीवन-जय या कि मरण होगा।
‘‘टकरायेंगे नक्षत्र-निकर,
बरसेगी भू पर वह्नि प्रखर,
फण शेषनाग का डोलेगा,
विकराल काल मुँह खोलेगा।
                     दुर्योधन! रण ऐसा होगा,
                     फिर कभी नहीं जैसा होगा।
‘‘भाई पर भाई टूटेंगे,
विष-बाण बूँद-से छूटेंगे,
वायस-श्रृगाल सुख लूटेंगे,
सौभाग्य मनुज के फूटेंगे।
                     आखिर तू भूशायी होगा,
                     हिंसा का पर, दायी होगा।’’   

पुस्तक | रश्मिरथी कवि | रामधारी सिंह ‘दिनकर’ भाषा | खड़ी बोली रचनाशैली | महाकाव्य छंद |
विषय | क्रोध,