ओ जीवन की मरु मरीचिका
पीछेचिंता सर्ग-
ओ जीवन की मरु मरीचिका, कायरता के अलस विषाद!
अरे पुरातन अमृत! अगतिमय मोहमुग्ध जर्जर अवसाद।
मौन! नाश! विध्वंस! अँधेरा! शून्य बना जो प्रगट अभाव,
वही सत्य है, अरी अमरते! तुझको यहाँ कहाँ अब ठाँव।
चिंता सर्ग-
ओ जीवन की मरु मरीचिका, कायरता के अलस विषाद!
अरे पुरातन अमृत! अगतिमय मोहमुग्ध जर्जर अवसाद।
मौन! नाश! विध्वंस! अँधेरा! शून्य बना जो प्रगट अभाव,
वही सत्य है, अरी अमरते! तुझको यहाँ कहाँ अब ठाँव।