सच है

पीछे

यह सच है:-
तुमने जो दिया दान दान वह,
हिन्दी के हित का अभिमान वह,
जनता का जन-ताका ज्ञान वह,
सच्चा कल्याण वह अथच है-
              यह सच है !
      बार बार हार हार मैं गया,
      खोजा जो हार क्षार में नया,-
      उड़ी धूल, तन सारा भर गया,
      नहीं फूल, जीवन अविकच है-
                    यह सच है !  

पुस्तक | अनामिका कवि | सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला भाषा | खड़ी बोली रचनाशैली | कविता छंद | मुक्त छन्द