ये रोशनी है हकीकत में एक छल लोगो

पीछे

ये रोशनी है हकीकत में एक छल लोगो,
कि जैसे जल में झलकता हुआ महल लोगो।

 

दरख्त हैं तो परिन्दे नजर नहीं आते,
जो मुस्तहक हैं वही हक से बेदखल लोगो।

 

वो घर में मेज पे कोहनी टिकाये बैठी है,
थमी हुई है वहीं उम्र आजकल लोगो।

 

तमाम रात रहा महवे-ख्वाब दीवाना,
किसी की नींद में पड़ता रहा खलल, लोगो।

 

जरूर वो भी इसी रास्ते से गुजरे हैं,
हर आदमी मुझे लगता है हम-शक्ल लोगो।

 

दिखे जो पाँवों के ताजा निशान सहरा में,
तो याद आए हैं तालाब में कँवल लोगो।

 

वे कह रहे हैं गजलगो नहीं रहे शायर,
मैं सुन रहा हूँ हरेक सिम्त से गजल लोगो।             
 

पुस्तक | साये में धूप कवि | दुष्यंत कुमार भाषा | खड़ी बोली रचनाशैली | गजल छंद |
विषय | आक्रोश,