हृदय ही तुम्हें दान कर दिया
पीछेसमर्पण-
हृदय ही तुम्हें दान कर दिया।
क्षुद्र था, उसने गर्व किया।।
तुम्हें पाया अगाध गम्भीर।
कहाँ जल बिन्दु, कहाँ निधि क्षीर।।
हमारा कहो न अब क्या रहा ?
तुम्हारा सब कब का हो रहा।।
तुम्हें अर्पण; औ‘ वस्तु त्वदीय ?
छीन लो छीन ममत्व मदीय।।