हृदय ही तुम्हें दान कर दिया

पीछे

समर्पण-

 

हृदय ही तुम्हें दान कर दिया।
क्षुद्र था, उसने गर्व किया।।
तुम्हें पाया अगाध गम्भीर।
कहाँ जल बिन्दु, कहाँ निधि क्षीर।।
हमारा कहो न अब क्या रहा ?
तुम्हारा सब कब का हो रहा।।
तुम्हें अर्पण; औ‘ वस्तु त्वदीय ?
छीन लो छीन ममत्व मदीय।।

 

पुस्तक | झरना कवि | जयशंकर प्रसाद भाषा | खड़ी बोली रचनाशैली | कविता छंद |