भारत ही जीवन-धन

पीछे

       भारत ही जीवन-धन,
       ज्योतिर्मय परम-रमण,
       सर-सरिता वन-उपवन।
       तपः-पुंज गिरि-कन्दर,
       निर्झर के स्वर पुष्कर,
       दिक्प्रान्तर मर्म-मुखर,
       मानव मानव-जीवन।
धौत-धवल ऋतु के पल,
संचारण चरण चपल,
कारण-वारण, वल्कल-
धारण, सुकृतोच्चारण।
      नहीं कहीं जड़-जघन्य
      नहीं कहीं अहम्मन्य
      नहीं कहीं स्तन्य-वन्य,
      चिन्मय केवल चिन्तन।   

पुस्तक | अणिमा कवि | सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला भाषा | खड़ी बोली रचनाशैली | कविता छंद | मुक्त छन्द