भारत ही जीवन-धन
पीछे भारत ही जीवन-धन,
ज्योतिर्मय परम-रमण,
सर-सरिता वन-उपवन।
तपः-पुंज गिरि-कन्दर,
निर्झर के स्वर पुष्कर,
दिक्प्रान्तर मर्म-मुखर,
मानव मानव-जीवन।
धौत-धवल ऋतु के पल,
संचारण चरण चपल,
कारण-वारण, वल्कल-
धारण, सुकृतोच्चारण।
नहीं कहीं जड़-जघन्य
नहीं कहीं अहम्मन्य
नहीं कहीं स्तन्य-वन्य,
चिन्मय केवल चिन्तन।