दो बूँदें
पीछेदो बूँदें-
शरद का सुन्दर नीलाकाश,
निशा निखरी, था निर्मल हास,
बह रही छाया पथ में स्वच्छ
सुधा सरिता लेती उच्छ्वास।
पुलक कर लगी देखने धरा,
प्रकृति भी सकी न आँखें मूँद,
सुशीतलकारी शशि आया,
सुधा की मनो बड़ी सी बूँद।
हरित किसलयमय कोमल वृक्ष,
झुक रहा जिसका पाकर भार,
उसी पर रे मतवाले मधुप!
बैठकर करता तू गुंजार।
न आशा कर तू अरे ! अधीर,
कुसुम रज-रस ले लूँगा गूँद,
फूल है नन्हा सा नादान,
भरा मकरन्द एक ही बूँद।