बादल छाये

पीछे

बादल छाये,
ये मेरे अपने सपने
      आँखों से निकले, मँडलाये।

बूँदें जितनी
चुनी अधखिली कलियाँ उतनी;
बूँदों की लड़ियों के इतने
       हार तुम्हें मैंने पहनाये।

गरजे सावन के घन घिर-घिर,
नाचे मोर वनों में फिर-फिर
जितनी बार 
चढ़े मेरे भी तार

छन्द से तरह-तरह तिर,
तुम्हें सुनाने को मैंने भी
       नहीं कहीं कम गाने गाये।

पुस्तक | अणिमा कवि | सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला भाषा | खड़ी बोली रचनाशैली | कविता छंद | मुक्त छन्द