बादल छाये
पीछेबादल छाये,
ये मेरे अपने सपने
आँखों से निकले, मँडलाये।
बूँदें जितनी
चुनी अधखिली कलियाँ उतनी;
बूँदों की लड़ियों के इतने
हार तुम्हें मैंने पहनाये।
गरजे सावन के घन घिर-घिर,
नाचे मोर वनों में फिर-फिर
जितनी बार
चढ़े मेरे भी तार
छन्द से तरह-तरह तिर,
तुम्हें सुनाने को मैंने भी
नहीं कहीं कम गाने गाये।