कौन जन्म लेता किस कुल में

पीछे

‘‘मैं कहता हूँ, अगर विधाता नर को मुठ्ठी में भरकर,
कहीं छींट दें ब्रह्मलोक से ही नीचे भूमण्डल पर।
तो भी विविध जातियों में ही मनुज यहाँ आ सकता है,
नीचे हैं क्यारियाँ बनीं, तो बीज कहाँ जा सकता है।

 

‘‘कौन जन्म लेता किस कुल में ? आकस्मिक ही है यह बात,
छोटे कुल पर, किन्तु, यहाँ होते तब भी कितने आघात!
हाय, जाति छोटी है, तो फिर सभी हमारे गुण छोटे,
जाति बड़ी, तो बड़े बनें वे, रहे लाख चाहे खोटे।’’ 

पुस्तक | रश्मिरथी कवि | रामधारी सिंह ‘दिनकर’ भाषा | खड़ी बोली रचनाशैली | महाकाव्य छंद |