महाराणा का महत्त्व

पीछे

महाराणा का महत्त्व-

 

करि-कर-सम कर-बीच लिये करवाल है
कौन पुरुष वह बैठा तट पर स्रोत के
दोनों आँखें उठ-उठ कर बतला रही
जीवन-मरण- समस्या उनमें है भरी।
यद्यपि है वह वीर श्रांत तब भी अभी
हृदय थका है नहीं, विपुल बल पूर्ण है;
क्योंकि कर्मफल-लाभ एक बल है स्वयं।
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कहा तमक कर तब प्रताप ने- “क्या कहा
अनुचित बल से लेना काम सुकर्म है!
इस अबला के बल से होंगे सबल क्या?
रण में टूटे ढाल तुम्हारी जो कभी
तो बचने के लिए शत्रु के सामने
पीठ करोगे? नहीं, कभी ऐसा नहीं,
दृढ़-प्रतिज्ञ यह हृदय, तुम्हारी ढाल बन
तुम्हें बचावेगा। इस पर भी ध्यान दो
घोर अँधेरे में उठती जब लहर हो
तुुमुल घात-प्रतिघात पवन का हो रहा
भीमकाय जलराशि क्षुब्ध हो सामने
कर्णधार-रक्षित दृढ़-हृदय सु-नाव को
छोड़, कूदना तिनके का अवलम्ब ले
घोर सिन्धु में, क्या बुधजन का काम है?
परम सत्य को छोड़ न हटते वीर हैं।
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सैनिक लोगों से मेरा संदेश यह
कहिए, कभी न कोई क्षत्रिय आज से
अबला को दुख दें, चाहे हों शत्रु की
शत्रु हमारे यवन- उन्हीं से युद्ध है
यवनीगण से नहीं हमारा द्वेष है।
सिंह क्षुधित हो तब भी तो करता नहीं
मृगया, डर से दबी शृंगाली-वृन्द की।“   

 

पुस्तक | महाराणा का महत्त्व कवि | जयशंकर प्रसाद भाषा | खड़ी बोली रचनाशैली | लम्बी कविता छंद |
विषय | वीरता,