पतनोन्मुख
पीछेहमारा डूब रहा दिनमान!
मास-मास दिन-दिन प्रतिपल
उगल रहे हो गरल-अनल,
जलता यह जीवन असफल;
हिम-हत-पातों-सा असमय ही
झुलसा हुआ शुष्क निश्चल!
विकल डालियों से
झरने ही पर हैं पल्लव-प्राण-
हमारा डूब रहा दिनमान!
हमारा डूब रहा दिनमान!
मास-मास दिन-दिन प्रतिपल
उगल रहे हो गरल-अनल,
जलता यह जीवन असफल;
हिम-हत-पातों-सा असमय ही
झुलसा हुआ शुष्क निश्चल!
विकल डालियों से
झरने ही पर हैं पल्लव-प्राण-
हमारा डूब रहा दिनमान!