खोलता इधर जन्म लोचन
पीछेखोलता इधर जन्म लोचन,
मूँदती उधर मृत्यु क्षण-क्षण;
अभी उत्सव औ‘ हास-हुलास,
अभी अवसाद, अश्रु, उच्छ्वास !
अचिरता देख जगत की आप
शून्य भरता समीर निःश्वास,
डालता पातों पर चुपचाप,
ओस के आँसू नीलाकाश;
सिसक उठता समुद्र का मन
सिहर उठते उडगन !