यज्ञ समाप्त हो चुका तो भी

पीछे

कर्म सर्ग-

 

यज्ञ समाप्त हो चुका तो भी
           धधक रही थी ज्वाला;
दारुण दृश्य ! रुधिर के छींटे
           अस्थि खंड की माला !

वेदी की निर्मम प्रसन्नता,
          पशु की कातर वाणी;
मिलकर वातावरण बना था
          कोई कुत्सित प्राणी।
Û Û Û Û Û Û Û Û Û Û Û 
ये प्राणी जो बचे हुए हैं
          इस अचला जगती के;
उनके कुछ अधिकार नहीं
          क्या वे सब ही हैं फीके !

मनु ! क्या यही तुम्हारी होगी
          उज्ज्वल नव मानवता ?
जिसमें सब कुछ ले लेना हो
          हंत ! बची क्या शवता।
 

पुस्तक | कामायनी कवि | जयशंकर प्रसाद भाषा | खड़ी बोली रचनाशैली | महाकाव्य छंद | लावनी
विषय | अहिंसा,