जल्द-जल्द पैर बढ़ाओ...

पीछे

        जल्द-जल्द पैर बढ़ाओ, आओ, आओ।
आज अमीरों की हवेली
किसानों की होगी पाठशाला,
धोबी, पासी, चमार, तेली
खोलेंगे अँधेरे का ताला,
एक पाठ पढ़ेंगे, टाट बिछाओ।
        यहाँ जहाँ सेठ जी बैठे थे
        बनिये की आँख दिखाते हुए,
        उनके ऐंठाये ऐंठे थे
        धोखे पर धोखा खाते हुए,
        बैंक किसानों का खुलाओ।
सारी सम्पत्ति देश की हो,
सारी आपत्ति देश की बने,
जनता जातीय वेश की हो,
वाद से विवाद यह ठने,
काँटा काँटे से कढ़ाओ।    

पुस्तक | बेला कवि | सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला भाषा | खड़ी बोली रचनाशैली | कविता छंद |