ज्येष्ठ
पीछेज्येष्ठ! क्रूरता-कर्कशता के ज्येष्ठ! सृष्टि के आदि!
वर्ष के उज्ज्वल प्रथम प्रकाश।
अन्त! सृष्टि के जीवन के हे अन्त! विश्व के व्याधि!
चराचर के हे निर्दय त्रास!
सृष्टि-भर के व्याकुल आह्वान!-अचल विश्वास!
सृष्टि-भर के शंकित अवसान!-दीर्घ निश्वास!
देते हैं हम तुम्हें प्रेम-आमन्त्रण,
आओ जीवन-शमन, बन्धु, जीवन-घन!
घोर-जटा-पिंगल मंगलमय देव ! योगि-जन-सिद्ध !
धूलि-धूसरित, सदा निष्काम!
उग्र! लपट यह लू की है या शूल-करोगे बिद्ध
उसे जो करता हो आराम!
बताओ, यह भी कोई रीति ? छोड़ घर-द्वार,
जगाते हो लोगों में भीति,-तीव्र संस्कार!-
या निष्ठुर पीड़न से तुम नव जीवन
भर देते हो, बरसाते हैं तब घन!