नभ से आ आभा-सी शुभे

पीछे

शरत् के प्रति-

 

नभ से आ आभा-सी शुभे, शुभ्र रक्खे पद
धौत धवल विश्व-कमल पर, कर में आस्वद-शद;
किन्तु बहा कल जो जल उद्धत हर शत-शत तन,
बता सकोगी क्या तुम-उसका भी क्या विवरण?
शारद-शत-जीवन की शरण न दो-वरण करो;
अन्ध-विश्व-जन्म-बन्ध मरण हरो-मरण हरो!


 

पुस्तक | असंकलित रचनाएँ कवि | सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला भाषा | खड़ी बोली रचनाशैली | कविता छंद | मुक्त छन्द
विषय | शरद ऋतु,